|| श्रीहरि: ||
जैसे ‘क्रिया’ अपनी नहीं है, ऐसे ही ‘पदार्थ’ भी अपने नहीं हैं । हम संसार में आये थे तो साथ में कुछ लाये नहीं थे, और जायँगे तो शरीर भी साथ नहीं जायगा । हमारे पास जो कुछ है, सब भगवान् का दिया हुआ है । अतः क्रिया और पदार्थ‒दोनों को ही भगवान् के अर्पण कर दो । एकनाथजी महाराज ने भागवत के एकादश स्कन्ध की जो टीका लिखी है, उसमें वर्णन आया है कि घर में झाड़ूसे फूस-कचरा इकट्ठा करके बाहर फेंके तो वह भी भगवान् के अर्पण कर दे । वह भी भजन हो जायगा !
श्री हरि
जवाब देंहटाएंJai shree sita ram ji
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