|| श्रीहरि ||
कर्मों की गाँठ बड़ी कड़ी है । विचारवान् पुरुष भगवान् के चिन्तन की तलवार से उस गाँठ को काट डालते हैं । तब भला, ऐसा कौन मनुष्य होगा, जो भगवान् की लीलाकथा में प्रेम न करे ॥
“यदनुध्यासिना युक्ता: कर्मग्रन्थिनिबन्धनम् |
छिन्दन्ति कोविदास्तस्य को न कुर्यात् कथारतिम् ॥“
...(श्रीमद्भागवत १.२.१५)
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