भगवन् !
जिस प्रकार मकड़ी स्वयं ही जाले को फैलाती, उसकी रक्षा करती और अन्त में उसे निगल जाती है—उसी प्रकार आप अकेले ही जगत् की रचना करने के लिये अपने से अभिन्न अपनी योगमाया को स्वीकार कर उससे अभिव्यक्त हुई अपनी सत्त्वादि शक्तियों-द्वारा स्वयं ही इस जगत् की रचना, पालन और संहार करते हैं ॥
एकः स्वयं संजगतः सिसृक्षया
अद्वितीययात्मन् अधि योगमायया ।
सृजस्यदः पासि पुनर्ग्रसिष्यसे
यथोर्णनाभिः भगवन् स्वशक्तिभिः ॥
सादर जय सियाराम 👏
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