मंगलवार, 31 जनवरी 2023

गोविन्दाय नम:



भगवन् ! 

जिस प्रकार मकड़ी स्वयं ही जाले को फैलाती, उसकी रक्षा करती और अन्त में उसे निगल जाती है—उसी प्रकार आप अकेले ही जगत् की रचना करने के लिये अपने से अभिन्न अपनी योगमाया को स्वीकार कर उससे अभिव्यक्त हुई अपनी सत्त्वादि शक्तियों-द्वारा स्वयं ही इस जगत् की रचना, पालन और संहार करते हैं ॥ 

एकः स्वयं संजगतः सिसृक्षया
     अद्वितीययात्मन् अधि योगमायया ।
सृजस्यदः पासि पुनर्ग्रसिष्यसे
     यथोर्णनाभिः भगवन् स्वशक्तिभिः ॥ 

(श्रीमद्भागवत ३|२१|१९)


1 टिप्पणी:

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  चतुर्थ स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०१) ध्रुवका वन-गमन मैत्रेय उवाच - सनकाद्या नारदश्च ऋभुर्...