गीता में स्वर्गादि लोकों का भी कई जगह उल्लेख आता है; पुनर्जन्म, परलोक, आवृत्ति-अनावृत्ति, गतागत (गमनागमन) आदि शब्द भी कई जगह आये हैं। छठे अध्याय के ४१-४२ वें श्लोकों में योगभ्रष्ट पुरुष के दीर्घकालतक स्वर्गादि लोकों में निवास कर शुद्ध आचरणवाले श्रीमान् पुरुषों के घर में अथवा ज्ञानवान् योगियों के ही कुल में जन्म लेने की बात आयी है तथा ४५ वें श्लोक में अनेक जन्मों की बात भी आयी है। इसी प्रकार १३ वें अध्याय के २१ वें श्लोक में पुरुष के सत्-असत् योनियों में जन्म लेने की बात कही गयी है, १४ वें अध्याय के १४-१५ तथा १८वें श्लोकों में गुणों के अनुसार मनुष्य के उच्च, मध्य तथा अधोगति को प्राप्त होने की बात आयी है तथा १५ वें अध्याय के श्लोक ७-८में एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में जाने का स्पष्टरूप में उल्लेख हुआ है। १६ वें अध्याय के श्लोक १६, १९ और २० में
भगवान ने आसुरी सम्पदावालों को बारम्बार तिर्यक योनियों और नरक में गिराने की बात कही है। इन सब प्रसंगों से भी
पुनर्जन्म तथा परलोक की पुष्टि होती है।
योगसूत्र में भी पुनर्जन्म का विषय आया है। महर्षि पतंजलि कहते हैं-
......(साधन०१२)
अर्थात् '
क्लेश* जिनकी जड़ हैं, वे कर्माशय (कर्मो की वासनाएँ) वर्तमान अथवा आगे के जन्मों
में भोगे जा सकते हैं। उन वासनाओं का फल किस रूप में मिलता है,
इसके विषय में महर्षि पतंजलि कहते हैं-
.....(साधन० १३)
अर्थात् '
क्लेशरूपी कारणके रहते हुए उन वासनाओंका फल जाति (योनि),
आयु (जीवन की अवधि) और भोग (सुख-दुःख) होते हैं।'
....................................
*
योगशास्त्र में अविद्या,अस्मिता, राग,
द्वेष और अभिनिवेश (मृत्युभय)-इनको 'क्लेश' नाम से कहा गया है।
शेष आगामी पोस्ट में
......गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “परलोक और पुनर्जन्म (एवं वैराग्य)“ पुस्तक
से
# लोक परलोक
# परलोक
जय श्री हरि
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि
जवाब देंहटाएं🙏🙏 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि: !!🙏🙏