(२) मनुष्य अपना अभाव कभी नहीं देखता, वह यह कभी नहीं सोचता कि एक दिन मैं नहीं रहूँगा अथवा मैं पहले नहीं था। अपने अभाव के बारे में आत्मा की ओर से उसे कभी गवाही नहीं मिलती। वह यही सोचता है कि मैं सदा से हूँ और सदा रहूंगा। इससे भी आत्मा की नित्यता सिद्ध होती है।
(३) बालक जन्मते ही रोने लगता है और जन्मने के बाद कभी हँसता
है,
कभी रोता है, कभी सोता है; जब माता उसके
मुख में स्तन देती है तो वह उसमें से दूध खींचने लगता है और धमकाने आदि पर भय से
काँपता हुआ भी देखा जाता है। बालक के ये सब आचरण पूर्वजन्म का लक्ष्य कराते हैं;
क्योंकि इस जन्म में तो उसने ये सब बातें सीखीं नहीं।
पूर्वजन्म के अभ्यास से ही ये सब बातें उसके अंदर स्वाभाविक ही होने लगती हैं।
पूर्वजन्म में अनुभव किये हुए सुख-दुःख का स्मरण करके ही वह हँसता और रोता है,
पूर्व में अनुभव किये हुए मृत्यु-भय के कारण ही वह काँपने
लगता है तथा पूर्वजन्म में किये हुए स्तनपान के अभ्यास से ही वह माता के स्तन का
दूध खींचने लगता है।
(४) जीवों में जो सुख-दुःख का भेद, प्रकृति अर्थात् स्वभाव और गुण-कर्मका भेद-काम-क्रोध,
राग-द्वेष आदि की न्यूनाधिकता–तथा क्रिया का भेद एवं बुद्धि का भेद दृष्टिगोचर होता है,
उससे भी पूर्वजन्म की सिद्धि होती है। एक ही माता-पिता से
उत्पन्न हुई सन्तान यहाँ तक कि एक ही साथ पैदा हुए बच्चे भी इन सब बातों में
एक-दूसरे से विलक्षण पाये जाते हैं। पूर्वजन्म के संस्कारों के अतिरिक्त इस
विचित्रता में कोई हेतु नहीं हो सकता। जिस प्रकार ग्रामोफोन की चूड़ी पर उतरे हुए
किसी गाने को सुनकर हम यह अनुमान करते हैं कि इसी प्रकार किसी मनुष्य ने इस गाने को
कहीं अन्यत्र गाया होगा, तभी उसकी प्रतिध्वनि को आज हम इस रूप में सुन पाते हैं,
उसी प्रकार आज हम किसी को सुखी अथवा दुःखी देखते हैं अथवा
अच्छे-बुरे स्वभाव और बुद्धिवाला पाते हैं तो उससे यही अनुमान होता है कि उसने
पूर्वजन्म में वैसे ही कर्म किये होंगे, जिनके संस्कार उसके अन्त:करण में संगृहीत हैं, जिन्हें वह अपने साथ लेता आया है। यदि किसी को वर्तमान जीवन
में हम सुखी पाते हैं तो इसका मतलब यही है कि उसने पूर्वजन्म में अच्छे कर्म किये
होंगे और दुःखी पाते हैं तो इसका मतलब यह होता है। कि उसने पूर्वजन्म में अशुभकर्म
किये होंगे। यही बात स्वभाव, गुण और बुद्धि आदि के सम्बन्ध में समझनी चाहिये।
शेष आगामी पोस्ट में
......गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “परलोक और पुनर्जन्म (एवं वैराग्य)“ पुस्तक
से
हे नाथ! हे नाथ! हे मेरे स्वामिन! मैं आपको भूलूं नहीं!
जवाब देंहटाएं🌼🍂🌹जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंहरि: शरणम् हरि:शरणम् हरि: शरणम्