ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:
प्रलयमें भी सूक्ष्म शरीर रहता है--
प्रलयकाल में भी जीवों के यह सत्रह तत्त्वों के शरीर ब्रह्माके समष्टि सूक्ष्मशरीरमें अपने अपने संचितकर्म-संस्कारों सहित विश्राम करते हैं और सृष्टिकी आदिमें उसीके द्वारा पुनः इनकी रचना हो जाती है; ( गीता ८ । १८ )। महाप्रलयमें ब्रह्मा सहित समष्टि व्यष्टि सम्पूर्ण सूक्ष्म शरीर ब्रह्मा के शान्त होनेपर शान्त हो जाते हैं, उस समय एक मूल प्रकृति रहती है, जिसको अव्याकृत माया कहते हैं। उसी महाकाल में जीवों के समस्त कारण शरीर अमुक कर्म-संस्कारों सहित अविकसित रूप से विश्राम पाते हैं। सृष्टिकी आदिमें सृष्टिके आदिपुरुष द्वारा ये सब पुनः रचे जाते हैं; ( गीता १४ । ३-४ )। अर्थात् परमात्मारूप अधिष्ठाता के सकाश से प्रकृति ही चराचरसहित इस जगत् को रचती है, इसी तरह यह संसार आवागमनरूप चक्र में घूमता रहता है; ( गीता ९ । १० )। महाप्रलय में पुरुष और उसकी शक्तिरूपा प्रकृति-- यह दो ही वस्तु रह जाती है, उस समय जीवों का प्रकृतिसहित पुरुष में लय हुआ करता है, इसीसे सृष्टि की आदि में उनका पुनरुत्थान होता है।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
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