मंगलवार, 21 मार्च 2023

दीवानों की दुनियाँ (पोस्ट 04)


सांसारिक लोग धन, मान, ऐश्‍वर्य, प्रभुता, बल, कीर्ति आदि की प्राप्ति के लिये परमात्मा की कुछ भी परवा न कर अपना सारा जीवन इन्हीं पदार्थों के प्राप्त करने में लगा देते हैं और इसीको परम पुरुषार्थ मानते हैं।  इसके विपरीत परमात्माकी प्राप्तिके अभिलाषी पुरुष परमात्मा के लिये इन सारी लोभनीय वस्तुओंका तृणवत्‌, नहीं, नहीं, विषवत्‌ परित्याग कर देते हैं और उसी में उनको बड़ा आनन्द मिलता है।  पहले को मान प्राण समान प्रिय है तो दूसरा मान-प्रतिष्ठा को शूकरी-विष्ठा समझता है।  पहला धन को-जीवन का आधार समझता है तो दूसरा लौकिक धन को परमधन की प्राप्ति में प्रतिबन्धक मानकर उसका त्याग कर देता है।  पहला प्रभुता प्राप्तकर जगत्‌ पर शासन करना चाहता है तो दूसरा ‘तृणादपि सुनीचेन तरोरिव सहिष्णुना’ बनकर महापुरुषोंके चरणकी रजका अभिषेक करनेमें ही अपना मंगल मानता है।  दोनोंके भिन्न भिन्न ध्येय और मार्ग हैं।  ऐसी स्थितिमें एक दूसरे को पथभ्रान्त समझना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है।  यह तो विषयी और मुमुक्षु का अन्तर है।  परन्तु इससे पहले किये हुए विवेचन के अनुसार मुक्त अथवा भगवदीय लीलामें सम्मिलित भक्तके लिये तो जगत्‌ का स्वरूप ही बदल जाता है।  इसी से वह इस खेल से मोहित नहीं होता।  जब छोटे लड़के काँच के या मिट्‍टी के खिलौनों से खेलते और उनके लेन-देन ब्याह-शादी में लगे रहते हैं, तब बड़े लोग उनके खेल को देखकर हँसा करते हैं, परन्तु छोटे बच्चों की दृष्टिमें वह बड़ोंकी भांति कल्पित वस्तुओंका खेल नहीं होता।  वे उसे सत्य समझते हैं और जरा-जरासी वस्तुके लिये लड़ते हैं, किसी खिलौने के टूट जाने या छिन जानेपर रोते हैं, वास्तव में उनके मनमें बड़ा कष्ट होता है।  नया खिलौना मिल जानेपर वे बहुत हर्षित होते हैं।  जब माता-पिता किसी ऐसे बच्चेको, जिसके मिट्‍टी के खिलौने टूट गये हैं या छिन गये हैं, रोते देखते हैं तो उसे प्रसन्न करनेके लिये कुछ खिलौने और दे देते हैं, जिससे वह बच्चा चुप हो जाता है और अपने मनमें बहुत हर्षित होता है परन्तु सच्चे हितैषी माता-पिता बालक को केवल खिलौना देकर ही हर्षित नहीं करना चाहते, क्योंकि इससे तो इस खिलौने के टूटनेपर भी उन्हें फिर रोना पड़ेगा।  अतएव वे समझाकर उनका यह भ्रम भी दूर कर देना चाहते हैं कि खिलौने वास्तव में सच्ची वस्तु नहीं है।  मिट्‍टी की मामूली चीज हैं, उनके जाने-आने या बनने-बिगड़ने में कोई विशेष लाभ-हानि नहीं है।  इसी प्रकार की दशा संसार के मनुष्यों की हो रही है।  

शेष आगामी पोस्ट में ...................

...............००४. ०५.  मार्गशीर्ष कृष्ण ११ सं०१९८६वि०. कल्याण ( पृ० ७५९ )


1 टिप्पणी:

  1. 💐🥀🌿जय श्री हरि: !!🙏🙏🙏
    हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि:शरणम्
    नारायण नारायण नारायण नारायण

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट१२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट१२) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन तत्...