प्रश्न‒भगवान् के दर्शन करने पर भी देवता मुक्त क्यों नहीं होते ?
उत्तर‒मुक्ति भाव के अधीन है, क्रिया के अधीन नहीं । देवता केवल भोग भोगने के लिये ही स्वर्गादि लोकों में गये हैं । अतः भोगपरायणता के कारण उनमें मुक्ति की इच्छा नहीं होती । इसके सिवा देवलोक में मुक्ति का अधिकार भी नहीं है ।
भगवान्के दो रूप होते हैं‒सच्चिदानन्दमयरूप और देवरूप । प्रत्येक ब्रह्माण्ड के जो अलग-अलग ब्रह्मा, विष्णु और महेश होते हैं, वह भगवान् का देवरूप है और जो सबका मालिक, सर्वोपरि परब्रह्म परमात्मा है, वह भगवान्का सच्चिदानन्दमयरूप है । इस सच्चिदानन्दमय-रूपको ही शास्त्रोंमें महाविष्णु आदि नामोंसे कहा गया है । भगवान् को भक्ति के वश में होकर भक्तों के सामने तो सच्चिदानन्दमयरूप से प्रकट होना पड़ता है, पर देवताओं के सामने वे देवरूप से ही प्रकट होते हैं । कारण कि देवता केवल अपनी रक्षा के लिये ही भगवान् को पुकारते हैं, मुक्त होने के लिये नहीं ।
(शेष आगामी पोस्ट में )
श्रीहरि
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