बुधवार, 26 अप्रैल 2023

तत्त्वज्ञान क्या है ? (आत्मज्ञान तथा परमात्मज्ञान)...पोस्ट 02



पुस्तकों की पढ़ाई करनेका, शास्त्रोंकी बातें सीखने का उद्देश्य न हो, प्रत्युत केवल तत्त्व को समझनेका उद्देश्य हो तो हम श्रुति विप्रतिपत्तिसे तर गये ! तात्पर्य है कि हमें न तो मोहकी मुख्यता रखनी है और न शास्त्रीय मतभेदकी मुख्यता रखनी है । किसी मत, सम्प्रदाय का भी कोई आग्रह नहीं रखना है [*] । इतना हो जाय तो हम योगके, तत्त्वज्ञानके अधिकारी हो गये ! इससे अधिक किसी अधिकार-विशेषकी जरूरत नहीं है । अब इस बातपर विचार करना है कि तत्त्वज्ञान क्या है ?

तत्त्वज्ञान सबसे सरल है, सबसे सुगम है और सबके प्रत्यक्ष अनुभवकी बात है । तात्पर्य है कि इसको करनेमें, समझनेमें और पानेमें कोई कठिनता है ही नहीं । इसमें करना, समझना और पाना लागू होता ही नहीं । कारण कि यह नित्यप्राप्त है और जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति आदि सम्पूर्ण अवस्थाओंमें सदा ज्यों-का-त्यों मौजूद है । तत्त्वज्ञान जितना प्रत्यक्ष है, उतना प्रत्यक्ष यह संसार कभी नहीं है । तात्पर्य है कि हमारे अनुभवमें तत्त्वज्ञान जितना स्पष्ट आता है, उतना स्पष्ट संसार नहीं आता । इस बातको इस प्रकार समझना चाहिये । जीव अनेक योनियोंमें जाता है । वह कभी मनुष्य बनता है, कभी पशु-पक्षी बनता है, कभी देवता बनता है, कभी राक्षस बनता है, कभी असुर बनता है, कभी भूत-प्रेत-पिशाच बनता है तो शरीर वही नहीं रहता, पर जीव स्वयं सत्तारूपसे वही रहता है । स्वभाव वही नहीं रहा, आदत वही नहीं रही, भाषा वही नहीं रही, व्यवहार वही नहीं रहा, लोक (स्थान) वही नहीं रहा, समय वही नहीं रहा; सब कुछ बदल गया, पर स्वयंकी सत्ता नहीं बदली । अगर सत्ता वही नहीं रहेगी तो तरह-तरहके नाम तथा रूप कौन धारण करेगा ? इसलिये गीतामें आया है‒

“भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ।“
...........(८ । १९)

‘वही यह प्राणिसमुदाय उत्पन्न हो-होकर लीन होता है ।’ जो उत्पन्न हो-होकर लीन होता है, वह शरीर है और जो वही रहता है, वह जीवका असली स्वरूप अर्थात् चिन्मय सत्ता (होनापन) है । यह ‘आत्मज्ञान’ का वर्णन हुआ ।

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[*] नारायण अरु नगरके, रज्जब राह अनेक ।
भावे आवो किधर से, आगे अस्थल एक ॥
पहुँचे पहुँचे एक मत, अनपहुँचे मत और ।
संतदास घड़ी अरठ की, ढुरे एक ही ठौर ॥
जब लगि काची खीचड़ी, तब लगि खदबद होय ।
संतदास सीज्यां पछे, खदबद करै न कोय ॥

नारायण ! नारायण !!

(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “तत्त्वज्ञान कैसे हो ?” पुस्तकसे


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