[ वेदान्तसार से ओत-प्रोत अत्यन्त लघुकलेवर वाली जीवन्मुक्तगीता श्रीदत्तात्रेय जी की रचना है, जिसमें अत्यन्त संक्षिप्त, पर सारगर्भित ढंग से सहज- सुबोध दृष्टान्तों द्वारा जीव तथा ब्रह्म के एकत्व का प्रतिपादन किया गया है, साथ ही जीवन्मुक्त-अवस्था को भी सम्यक् रूप से परिभाषित किया गया है। इसी साधकोपयोगी गीता को यहाँ सानुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है-— ]
जीवन्मुक्तिश्च
या मुक्तिः सा मुक्तिः पिण्डपातने ।
या
मुक्तिः पिण्डपातेन सा मुक्ति: शुनि शूकरे ॥ १ ॥
अपने शरीर की
आसक्ति का त्याग (देहबुद्धि का त्याग) ही वस्तुत: जीवन्मुक्ति है | शरीर के नाश होने पर शरीर से जो मुक्ति (मृत्यु) होती है, वह तो कूकर-शूकर आदि समस्त प्राणियों को भी प्राप्त ही है ॥ १ ॥
जीव:शिवः
सर्वमेव भूतेष्वेवं व्यवस्थितः ।
एवमेवाभिपश्यन्
हि जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥ २ ॥
शिव
(परमात्मा) ही सभी प्राणियों में जीवरूप से विराजमान हैं-
इस प्रकार
देखनेवाला अर्थात् सर्वत्र भगवद्दर्शन करनेवाला मनुष्य ही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा
जाता है ॥२॥
एवं
ब्रह्म जगत्सर्वमखिलं भासते रविः ।
संस्थितं
सर्वभूतानां जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥ ३ ॥
जिस प्रकार
सूर्य समस्त ब्रह्माण्डमण्डल को प्रकाशित करता रहता
है, उसी प्रकार चिदानन्दस्वरूप ब्रह्म समस्त प्राणियों में प्रकाशित होकर
सर्वत्र व्याप्त है। इस ज्ञान से परिपूर्ण मनुष्य ही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता
है ॥ ३ ॥
एकधा
बहुधा चैव दृश्यते जलचन्द्रवत्।
आत्मज्ञानी
तथैवैको जीवन्मुक्तः स उच्यते॥४॥
जैसे एक ही
चन्द्रमा अनेक जलाशयों में प्रतिबिम्बित होकर अनेक रूपों में दिखायी देता है, उसी प्रकार यह अद्वितीय आत्मा अनेक देहों में
भिन्न-भिन्न
रूप से दीखनेपर भी एक ही है - इस आत्मज्ञान को प्राप्त
मनुष्य ही
वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है॥४॥
......शेष
आगामी पोस्ट में
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958)
से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर।जय श्री गुरु देव दत्त ।
जवाब देंहटाएं🌷🍂🌹 जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
जय जय श्री राधे💐
जवाब देंहटाएंओम नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🙏
जवाब देंहटाएंमगनीरामक
जवाब देंहटाएंनमो नारायण
जवाब देंहटाएंसादर चरण स्पर्श चाचा जी
जय श्री हरी
जवाब देंहटाएंOm tat sat 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंश्रीमन नारायण नारायणा नारायण
जवाब देंहटाएंलक्ष्मी नारायण नारायण नारायण
जय जय श्री हरि ।