|| श्री परमात्मने नम: ||
सर्वभूते
स्थितं ब्रह्म भेदाभेदो न विद्यते ।
एकमेवाभिपश्यँश्च
जीवन्मुक्तः स उच्यते॥५॥
सभी
प्राणियों में स्थित ब्रह्म (परमात्मा) भेद और अभेद से परे है । (एक होने के कारण
भेद से परे और अनेक रूपों में दीखने के
कारण अभेद से परे है) इस प्रकार अद्वितीय परमतत्त्व को सर्वत्र व्याप्त देखने वाला
मनुष्य ही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥५॥
तत्त्वं
क्षेत्रं व्योमातीतमहं क्षेत्रज्ञ उच्यते ।
अहं
कर्ता च भोक्ता च जीवन्मुक्तः स उच्यते॥६॥
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – इन
पंचतत्त्वों से बना यह शरीर ही क्षेत्र है तथा आकाश से परे अहंकार ('मैं' ) ही क्षेत्रज्ञ ( शरीररूपी क्षेत्र को
जाननेवाला) कहा जाता है । यह 'मैं' (अहंकार)
ही समस्त कर्मों का कर्ता और कर्मफलों का भोक्ता है । (चिदानन्दस्वरूप आत्मा
नहीं)—इस ज्ञान को धारण करनेवाला ही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥६॥
कर्मेन्द्रियपरित्यागी
ध्यानावर्जितचेतसः ।
आत्मज्ञानी
तथैवैको जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥ ७ ॥
ध्यान से भरे
एकाग्र चित्तवाला और कर्मेन्द्रियों की हलचल से रहित, अद्वितीय आत्मतत्त्व में लीन ज्ञानी ही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥
७ ॥
शारीरं
केवलं कर्म शोकमोहादिवर्जितम् ।
शुभाशुभपरित्यागी
जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥ ८ ॥
जो मनुष्य
शोक और मोहसे रहित होकर यथाप्राप्त शरीरधर्म का पालन करता हुआ कर्म करता रहता है
और शुभ–अशुभ के भेद से ऊपर उठ गया है, ऐसा ज्ञानी ही
वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥ ८ ॥
......शेष
आगामी पोस्ट में
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958)
से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा
जवाब देंहटाएं🌸🌿🌷 जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः