शुकदेवजी
को नारदजीद्वारा वैराग्य और
ज्ञान
का उपदेश देना
निवृत्तिःकर्मणः
पापात् सततं पुण्यशीलता ।
सद्वृत्तिः
समुदाचारः श्रेय एतदनुत्तमम् ॥ ७ ॥
पापकर्मों से
दूर रहना,
सदा पुण्यकर्मों का अनुष्ठान करना, श्रेष्ठ
पुरुषों के से बर्ताव और सदाचार का पालन करना - यही सर्वोत्तम श्रेय (कल्याण) -का साधन है ॥७॥
मानुष्यमसुखं
प्राप्य यः सज्जति स मुह्यति ।
नालं
स दुःखमोक्षाय संयोगो दुःखलक्षणम् ॥ ८ ॥
जहाँ सुखका
नाम भी नहीं है,
ऐसे इस मानव – शरीर को पाकर जो विषयों में आसक्त होता है, वह मोह को प्राप्त होता है। विषयों का संयोग दुःखरूप ही है, अतः दुःखों से छुटकारा नहीं दिला सकता ॥ ८ ॥
सक्तस्य
बुद्धिश्चलति मोहजालविवर्धनी ।
मोहजालावृतो
दुःखमिह चामुत्र सोऽश्नुते ॥ ९ ॥
विषयासक्त
पुरुषकी बुद्धि चंचल होती है। वह मोहजालको बढ़ानेवाली है, मोहजालसे बँधा हुआ पुरुष इस लोक तथा परलोकमें दुःख ही भोगता है ॥ ९ ॥
सर्वोपायात्
तु कामस्य क्रोधस्य च विनिग्रहः ।
कार्यः
श्रेयोऽर्थिना तौ हि श्रेयोघातार्थमुद्यतौ ॥ १० ॥
जिसे
कल्याणप्राप्तिकी इच्छा हो,
उसे सभी उपायोंसे काम और क्रोधको दबाना चाहिये; क्योंकि ये दोनों दोष कल्याणका नाश करनेके लिये उद्यत रहते हैं ॥ १० ॥
नित्यं
क्रोधात् तपो रक्षेच्छ्रियं रक्षेच्च मत्सरात् ।
विद्यां
मानावमानाभ्यामात्मानं तु प्रमादतः ॥ ११॥
मनुष्यको
चाहिये कि सदा तपको क्रोधसे, लक्ष्मीको डाहसे, विद्याको मानापमानसे और अपने-आपको प्रमादसे बचाये ॥ ११ ॥
......शेष
आगामी पोस्ट में
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएं🌷श्री मन्नारायण 🌷
जवाब देंहटाएंआवाज के साथ बताए
जवाब देंहटाएं🌼🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण
🪷🌹🥀🪷जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ नमो नारायण