शनिवार, 22 जुलाई 2023

नारद गीता पहला अध्याय (पोस्ट 02)

 


 

शुकदेवजी को नारदजीद्वारा वैराग्य और

ज्ञान का उपदेश देना

 

निवृत्तिःकर्मणः पापात् सततं पुण्यशीलता ।

सद्वृत्तिः समुदाचारः श्रेय एतदनुत्तमम् ॥ ७ ॥

 

पापकर्मों से दूर रहना, सदा पुण्यकर्मों का अनुष्ठान करना, श्रेष्ठ पुरुषों के से बर्ताव और सदाचार का पालन करना - यही सर्वोत्तम श्रेय (कल्याण) -का साधन है ॥७॥

 

मानुष्यमसुखं प्राप्य यः सज्जति स मुह्यति ।

नालं स दुःखमोक्षाय संयोगो दुःखलक्षणम् ॥ ८ ॥

 

जहाँ सुखका नाम भी नहीं है, ऐसे इस मानव – शरीर को पाकर जो विषयों में आसक्त होता है, वह मोह को प्राप्त होता है। विषयों का संयोग दुःखरूप ही है, अतः दुःखों से छुटकारा नहीं दिला सकता ॥ ८ ॥

 

सक्तस्य बुद्धिश्चलति मोहजालविवर्धनी ।

मोहजालावृतो दुःखमिह चामुत्र सोऽश्नुते ॥ ९ ॥

विषयासक्त पुरुषकी बुद्धि चंचल होती है। वह मोहजालको बढ़ानेवाली है, मोहजालसे बँधा हुआ पुरुष इस लोक तथा परलोकमें दुःख ही भोगता है ॥ ९ ॥

 

सर्वोपायात् तु कामस्य क्रोधस्य च विनिग्रहः ।

कार्यः श्रेयोऽर्थिना तौ हि श्रेयोघातार्थमुद्यतौ ॥ १० ॥

 

जिसे कल्याणप्राप्तिकी इच्छा हो, उसे सभी उपायोंसे काम और क्रोधको दबाना चाहिये; क्योंकि ये दोनों दोष कल्याणका नाश करनेके लिये उद्यत रहते हैं ॥ १० ॥


नित्यं क्रोधात् तपो रक्षेच्छ्रियं रक्षेच्च मत्सरात् ।

विद्यां मानावमानाभ्यामात्मानं तु प्रमादतः ॥ ११॥

 

मनुष्यको चाहिये कि सदा तपको क्रोधसे, लक्ष्मीको डाहसे, विद्याको मानापमानसे और अपने-आपको प्रमादसे बचाये ॥ ११ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से

 



6 टिप्‍पणियां:

  1. 🌷श्री मन्नारायण 🌷

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  2. आवाज के साथ बताए

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  3. 🌼🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  4. 🪷🌹🥀🪷जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    ॐ नमो नारायण

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