शनिवार, 22 जुलाई 2023

नारद गीता पहला अध्याय (पोस्ट 01)

 


 [ महाभारत के शान्तिपर्व में तीन अध्याय वाली नारदगीता प्राप्त होती है। इसमें देवर्षि नारद द्वारा श्रीशुकदेवजी को ज्ञान तथा वैराग्य का उपदेश दिया गया है तथा इसी क्रम में सदाचार की प्रेरणा देते हुए धैर्य तथा अनासक्ति पर विशेष बल दिया गया है । तदनन्तर मनुष्य को प्रारब्धानुसार प्राप्त सुख-दु:ख आदिका वर्णन है। प्रारब्ध स्वयं उसी के पूर्वकृत कर्मों के परिणामस्वरूप बनता है तथा मनुष्य परवश-सा होकर उन्हें भोगने को विवश होता है । अतः अहंबुद्धि का सर्वथा त्याग करके, बन्धनमुक्त हो सनातन – पद को प्राप्त करना चाहिये । यही तथ्य इस गीत में बहुत रोचक ढंग से बताया गया है। इसकी भाषा अत्यन्त सुबोध, दृष्टान्त अत्यन्त रोचक तथा उपदेश सभी के लिये उपयोगी है। सहज बोधगम्य इस नारदगीता को यहाँ सानुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है- ]

 

शुकदेवजी को नारदजीद्वारा वैराग्य और

ज्ञान का उपदेश देना

 

भीष्म उवाच

 

एतस्मिन्नन्तरे शून्ये नारदः समुपागमत्।

शुकं स्वाध्यायनिरतं वेदार्थान् वक्तुमीप्सितान् ॥ १ ॥

 

भीष्मजी कहते हैं- युधिष्ठिर ! व्यासजीके चले जानेके बाद उस सूने आश्रम में स्वाध्यायपरायण शुकदेवसे अपना इच्छित वेदोंका अर्थ कहनेके लिये देवर्षि नारदजी पधारे ॥ १ ॥

 

देवर्षि तु शुको दृष्ट्वा नारदं समुपस्थितम् ।

अर्घ्यपूर्वेण विधिना वेदोक्तेनाभ्यपूजयत्॥ २ ॥

 

देवर्षि नारद को उपस्थित देखकर शुकदेव ने वेदोक्त विधि से अर्घ्य आदि निवेदन करके उनका पूजन किया ॥ २ ॥

 

नारदोऽथाब्रवीत् प्रीतो ब्रूहि धर्मभृतां वर ।

केन त्वां श्रेयसा वत्स योजयामीति हृष्टवत् ॥ ३॥

 

उस समय नारदजी ने प्रसन्न होकर कहा - ' वत्स ! तुम धर्मात्माओं में श्रेष्ठ हो। बताओ, तुम्हें किस श्रेष्ठ वस्तु की प्राप्ति कराऊँ ?' यह बात उन्होंने बड़े हर्ष के साथ कही ॥ ३ ॥

 

नारदस्य वचः श्रुत्वा शुकः प्रोवाच भारत ।

अस्मिँल्लोके हितं यत् स्यात् तेन मां योक्तुमर्हसि ॥ ४ ॥

 

भरतनन्दन! नारदजी की यह बात सुनकर शुकदेव ने कहा - ' इस लोक में जो परम कल्याण का साधन हो, उसी का मुझे उपदेश देनेकी कृपा करें' ॥४॥

 

नारद उवाच

 

तत्त्वं जिज्ञासतां पूर्वमृषीणां भावितात्मनाम् ।

सनत्कुमारो भगवानिदं वचनमब्रवीत्॥५॥

 

नारदजी ने कहा – वत्स ! पूर्वकाल की बात है, पवित्र अन्तःकरण वाले ऋषियों ने तत्त्वज्ञान प्राप्त करने की इच्छा से प्रश्न किया। उसके उत्तर में भगवान् सनत्कुमार ने यह उपदेश दिया ॥ ५ ॥

 

नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति सत्यसमं तपः ।

नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम् ॥ ६ ॥

 

विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है । सत्य के समान कोई तप नहीं है । राग के समान कोई दुःख नहीं है और त्याग के सदृश कोई सुख नहीं है ॥६॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से



7 टिप्‍पणियां:

  1. 🌼🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  2. 🌷भज गोविंद गोविंद भज गोविंद गोविंद🌷

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  3. जय श्री सीताराम

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  4. 💐💖💐🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री हरि: शरणम् ही केवलम
    हरि: ॐ तत्सत् 🙏🙏

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