बुधवार, 12 जुलाई 2023

रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र { हिन्दी भावार्थ } ..पोस्ट..०२




|| ॐ नम: शिवाय ||

जिन्होंने जटारूपी अटवी(वन)-से निकलती हुई गंगाजी के गिरते हुए प्रवाहों से पवित्र किये गए गले में सर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारण कर, डमरू के दम-दम शब्दों से मंडित प्रचंड तांडव(नृत्य) किया, वे शिवजी हमारे कल्याण का विस्तार करें ||१||
जिनका मस्तक जतारूपी कड़ाह में वेग से घूमती हुई गंगा की चंचल तरंग-लताओं से सुशोभित हो रहा है, ललाटाग्नि धक्-धक् जल रही है, सर पर बाल चन्द्रमा विराजमान हैं, उन (भगवान् शिव)-में मेरा निरंतर अनुराग हो ||२||
गिरिराजकिशोरी पार्वती के विलासकालोपयोगी शिरोभूषण से समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन आनंदित हो रहा है,जिनकी निरन्तर कृपादृष्टि से कठिन आपत्ति का भी निवारण होजाता है, ऐसे किसी दिगंबर तत्त्व में मेरा मन विनोद करे ||३||
जिनके जटाजूटवर्ती भुजंगमों के फणों की मणियों का फैलता हुआ पिंगल प्रभापुंज दिशारूपिणी अंगनाओं के मुखपर कुंकुमराग का अनुलेपन कर रहा है, मतवाले हाथी के हिलते हुए चमड़े का उत्तरीय वस्त्र(चादर) धारण करने से स्निग्धवर्ण हुए उन भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत विनोद करे ||४||
जिनकी चरणपादुकाएं इन्द्र समस्त देवताओं के (प्रणाम करते समय) मस्तकवर्ती कुसुमों की धूली से धूसरित हो रही हैं; नागराज (शेष)- के हार से बंधी हुई जटा वाले वे भगवान् चन्द्रशेखर मेरे लिए मेरे चिरस्थायिनी समाप्ति के साधक हों ||५||
जिसने ललाट-वेदी पर प्रज्वलित हुई अग्नि के स्फुलिंगों के तेज से कामदेव को नष्ट कर डाला था, जिसे इन्द्र नमस्कार किया करते हैं, सुधाकर की कला से सुशोभित मुकुटवाला वह [श्रीमहादेवजी का] उन्नत विशाल ललाट वाला जटिल मस्तक हमारी सम्पत्ति का साधक हो ||६||
जिन्होंने अपने विकराल भालपट्ट पर धक्-धक् जलती हुई अग्नि में प्रचंड कामदेव को हवं कर दिया था, गिरिराजकिशोरी के स्तनों पर पत्रभंग रचना करने के एकमात्र कारीगर उन भगवान् त्रिलोचन में मेरी धारणा लगी रहे ||७||
जिनके कंठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधी रात के समय फैलाते हुए दुरूह अन्धकार के समान श्यामता अंकित है; जो गजचर्म लपेटे हुए हैं. वे संसारभार को धारण करने वाले चन्द्रमा [-के संपर्क]- से मनोहर कांटी वाले भगवान् गंगाधर मेरी सम्पत्ति का विस्तार करें ||८||
जिनका कंठदेश खिले हुए नील कमलसमूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाली हरिणी की-सी छविवाले चिन्ह से सुशोभित है तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव(संसार), दक्षयज्ञ, हाथी, अंधकासुर और यमराज का भी उच्छेदन (संहार) करने वाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ ||९||
जो अभिमानरूप पार्वती की कलारूप कदम्बमंजरी के मकरन्दस्रोत की बढती हुई माधुरी के पान करने वाले मधुप हैं तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्षयज्ञ, हाथी, अंधकासुर और यमराज का भी अंत करने वाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ ||१०||
जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए भुजंग के फुफकारने से ललाट के भयंकर अग्नि क्रमश: धधकती हुई फ़ैल रही है, धिमि-धिमि बजते हुए मृदंग के गंभीर मंगल घोष के क्रमानुसार जिनका प्रचंड तांडव हो रहा है, उन भगवान् शंकर की जय हो ||११||
पत्थर और सुन्दर बिछोनों में, साँप और मुक्ता की माला में,बहुमूल्य रत्न तथा मिट्टी के ढेले में, मित्र या शत्रुपक्ष में, तृण अथवा कमललोचना तरुणी में, प्रजा और पृथ्वी के महाराज में समानभाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूंगा ? ||१२||
सुन्दर ललाटवाले भगवान् चन्द्रशेखर में दत्तचित्त हो अपने कुविचारों को त्यागकर गंगाजी के तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआ सर पर हाथ जोड़ डबडबाई हुई विह्वल आँखों से ‘शिव’ मंत्र का उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होऊँगा ?||१३||
जो मनुष्य इसप्रकार से उक्त इस उत्तमोत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ, स्मरण और वर्णन करता रहता है, वह सदा शुद्ध रहता है और शीघ्र ही सुरगुरु शंकरजी की अच्छी भक्ति प्राप्त कर लेता है, वह विरुद्ध गति को नहीं प्राप्त होता; क्योंकि श्रीशिवजी का अच्छी प्रकार का चिंतन प्राणीवर्ग के मोह का नाश करने वाला है ||१४||
सायंकाल में पूजा समाप्त होने पर रावण के गाये हुए इस शम्भु-पूजन-संबंधी स्तोत्र का जो पाठ करता है, भगवान् शंकर उस मनुष्य को रथ, हाथी, घोड़ों से युक्त सदा स्थिर रहने वाली अनुकूल सम्पत्ति देते हैं ||१५||
-------गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “शिवस्तोत्ररत्नाकर” (कोड 1417) से

 



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