सोमवार, 3 जुलाई 2023

जीवन्मुक्तगीता (पोस्ट.. 05)


 

|| श्री परमात्मने नम: ||


जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिञ्च तुरीयावस्थितं सदा ।

सोऽहं मनो विलीयेत जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥ १९ ॥

 

जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति तथा तुरीयावस्था में रहते हुए भी जिसका मन सदा सोऽहं (मैं वही परमात्मतत्त्व हूँ) - के भाव में मग्न रहता है, वही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥ १९ ॥

 

सोऽहं स्थितं ज्ञानमिदं सूत्रेषु मणिवत्परम् ।

सोऽहं ब्रह्म निराकारं जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥ २० ॥

 

मैं वही निराकार ब्रह्म हूँ - इस सोऽहं ज्ञानधारा में जो उसी प्रकार निरन्तर स्थित रहता है, जैसे पिरोयी गयी मणिमाला में सूत्र निरन्तर विद्यमान रहता है, वही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥ २० ॥

 

मन एव मनुष्याणां भेदाभेदस्य कारणम् ।

विकल्पनैव संकल्पो जीवन्मुक्तः स उच्यते॥२१॥

 

विकल्प और संकल्पात्मक मन ही मनुष्यों के  भेद और ऐक्य का हेतु  है, जो ऐसा जानता है (और मन के पार चला जाता है), वही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥ २१ ॥

 

मन एव विदुः प्राज्ञाः सिद्धसिद्धान्त एव च ।

सदा दृढं तदा मोक्षो जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥ २२ ॥

 

विद्वानों ने मन को ही जान लिया है। सिद्ध-सिद्धान्त भी यही है कि (साधना) मन की दृढ़ता से ही मोक्ष प्राप्त होता है। जिसने इस सत्य

को जान लिया, वही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥ २२ ॥

 

योगाभ्यासी मनः श्रेष्ठो अन्तस्त्यागी बहिर्जडः ।

अन्तस्त्यागी बहिस्त्यागी जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥ २३ ॥

 

मन से अन्तर्वृत्तियों का त्याग और बाह्यवृत्तियों की उपेक्षा करने वाला योगाभ्यासी श्रेष्ठ है, किंतु अन्तः और बाह्य - दोनों वृत्तियों का मन से त्याग करनेवाला ही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥ २३ ॥

 

॥ इति श्रीमद्दत्तात्रेयकृता जीवन्मुक्तगीता सम्पूर्णा ॥

 

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से

 



4 टिप्‍पणियां:

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...