नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय
शीघ्रं
परशरीराणि च्छिन्नबीजं शरीरिणम् ।
प्राणिनं
प्राणसंरोधे मांसश्लेष्मविवेष्टितम् ॥ २१ ॥
जिसका स्थूल
शरीर क्षीण हो गया है तथा जो कफ और मांसमय शरीर से घिरा हुआ है, उस देहधारी प्राणी को मृत्यु के बाद शीघ्र ही दूसरे शरीर उपलब्ध हो जाते
हैं ॥ २१ ॥
निर्दग्धं
परदेहेऽपि परदेहं चलाचलम् ।
विनश्यन्तं
विनाशान्ते नावि नावमिवाहितम्॥ २२॥
जैसे एक नौका
भग्न होनेपर उसपर बैठे हुए लोगों को उतारने के लिये दूसरी नाव प्रस्तुत रहती है, उसी प्रकार एक शरीर से मृत्यु को प्राप्त होते हुए जीवको लक्ष्य करके
मृत्यु के बाद उसके कर्मफल- भोगके लिये दूसरा नाशवान् शरीर उपस्थित कर दिया जाता
है ॥ २२ ॥
सङ्गत्या
जठरे न्यस्तं रेतोबिन्दुमचेतनम्।
केन
यत्नेन जीवन्तं गर्भं त्वमिह पश्यसि ॥ २३॥
शुकदेव !
पुरुष स्त्रीके साथ समागम करके उसके उदरमें जिस अचेतन शुक्रबिन्दुको स्थापित करता
है,
वही गर्भरूप में परिणत होता है। फिर वह गर्भ किस यत्न से यहाँ जीवित
रहता है, क्या तुम कभी इसपर विचार करते हो ? ॥ २३ ॥
अन्नपानानि
जीर्यन्ते यत्र भक्षाश्च भक्षिताः ।
तस्मिन्नेवोदरे
गर्भः किं नान्नमिव जीर्यते ॥ २४ ॥
जहाँ खाये
हुए अन्न और जल पच जाते हैं तथा सभी तरह के भक्ष्य पदार्थ जीर्ण हो जाते हैं, उसी पेट में पड़ा हुआ गर्भ अन्न के समान क्यों नहीं पच जाता है ? ॥ २४ ॥
गर्भे
मूत्रपुरीषाणां स्वभावनियता गतिः ।
धारणे
वा विसर्गे वा न कर्ता विद्यते वशः ॥ २५ ॥
स्त्रवन्ति
ह्युदराद् गर्भा जायमानास्तथा परे ।
आगमेन
तथान्येषां विनाश उपपद्यते ॥ २६ ॥
गर्भ में मल
और मूत्र के धारण करने या त्याग में कोई स्वभावनियत गति है; किंतु कोई स्वाधीन कर्ता नहीं है । कुछ गर्भ माता के पेट से गिर जाते हैं,
कुछ जन्म लेते हैं और कितनों की ही जन्म लेने के बाद मृत्यु हो जाती
है ॥ २५-२६॥
एतस्माद्
योनिसम्बन्धाद् यो जीवन् परिमुच्यते ।
प्रजां
च लभते काञ्चित् पुनर्द्वन्द्वेषु सज्जति ॥ २७ ॥
इस योनि –
सम्बन्ध से कोई सकुशल जीता हुआ बाहर निकल आता है, तब कोई सन्तान
को प्राप्त होता है और पुनः परस्पर के सम्बन्ध में संलग्न हो जाता है ॥ २७ ॥
......शेष
आगामी पोस्ट में
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से
💐🌿🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
हरि : शरणम्
जय श्री हरि 🙏
जवाब देंहटाएं🌸🌿💐🌼जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव