सोमवार, 31 जुलाई 2023

नारद गीता तीसरा अध्याय (पोस्ट 06)

 



नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें  परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय

 

स तस्य सहजातस्य सप्तमीं नवमीं दशाम् ।

प्राप्नुवन्ति ततः पञ्च न भवन्ति गतायुषः ॥ २८ ॥  

 

अनादिकाल से साथ उत्पन्न होनेवाले शरीर के साथ जीवात्मा अपना सम्बन्ध स्थापित कर लेता है । इस शरीर की गर्भवास, जन्म, बाल्य, कौमार, पौगण्ड, यौवन, वृद्धत्व, जरा, प्राणरोध और नाश- ये दस दशाएँ होती हैं । इनमेंसे सातवीं और नवीं दशा को भी शरीरगत पाँचों भूत ही प्राप्त होते हैं, आत्मा नहीं । आयु समाप्त होनेपर शरीरकी नवीं दशामें पहुँचनेपर ये पाँच भूत नहीं रहते । अर्थात् दसवीं दशाको प्राप्त हो जाते हैं ॥ २८ ॥

 

नाभ्युत्थाने मनुष्याणां योगाः स्युर्नात्र संशयः ।

व्याधिभिश्च विमथ्यन्ते व्याधैः क्षुद्रमृगा इव ॥ २९ ॥

 

जैसे व्याध छोटे मृगोंको कष्ट पहुँचाते हैं, उसी प्रकार जब नाना प्रकार के रोग मनुष्यों को मथ डालते हैं, तब उनमें उठने-बैठने की भी शक्ति नहीं रह जाती, इसमें संशय नहीं है॥ २९ ॥

 

व्याधिभिर्मथ्यमानानां त्यजतां विपुलं धनम्।

वेदनां नापकर्षन्ति यतमानाश्चिकित्सकाः ॥ ३० ॥

 

रोगों से पीड़ित हुए मनुष्य वैद्यों को बहुत-सा धन देते हैं और वैद्यलोग रोग दूर करने की बहुत चेष्टा करते हैं तो भी उन रोगियों की पीड़ा दूर नहीं कर पाते हैं ॥ ३० ॥

 

ते चातिनिपुणा वैद्याः कुशलाः सम्भृतौषधाः ।

व्याधिभिः परिकृष्यन्ते मृगा व्याधैरिवार्दिताः ॥ ३१ ॥

 

बहुत-सी ओषधियोंका संग्रह करनेवाले चिकित्सामें कुशल चतुर वैद्य भी व्याधोंके मारे हुए मृगोंकी भाँति रोगोंके शिकार हो जाते हैं ॥ ३१ ॥

 

ते पिबन्तः कषायांश्च सर्पींषि विविधानि च ।

दृश्यन्ते जरया भग्ना नगा नागैरिवोत्तमैः ॥ ३२ ॥

 

बड़े-बड़े हाथी जैसे वृक्षोंको झुका देते हैं, वैसे ही वे तरह- तरहके काढ़े और नाना प्रकारके घी पीते रहते हैं तो भी वृद्धावस्था उनकी कमर टेढ़ी कर देती है; यह देखा जाता है ॥ ३२ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से

 



6 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹💐🌾जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  2. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
    हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे 🪻🌿🪻जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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