मंगलवार, 25 जुलाई 2023

नारद गीता पहला अध्याय (पोस्ट 08

 



शुकदेवजी को नारदजीद्वारा वैराग्य और

ज्ञान का उपदेश देना

 

ज्ञानेन विविधान् क्लेशानतिवृत्तस्य मोहजान् ॥ ५२ ॥

लोके बुद्धिप्रकाशेन लोकमार्गों न रिष्यते ।

 

जो ज्ञान के बल से मोहजनित नाना प्रकार के क्लेशों से पार हो गया है, उसके लिये जगत् में बौद्धिक प्रकाश से कोई भी लोक व्यवहार का मार्ग अवरुद्ध नहीं होता ॥ ५२ ॥

 

अनादिनिधनं जन्तुमात्मनि स्थितमव्ययम् ॥ ५३ ॥

अकर्तारममूर्तं च भगवानाह तीर्थवित्।

 

मोक्षके उपायको जाननेवाले भगवान् नारायण कहते हैं कि आदि-

अन्तसे रहित, अविनाशी, अकर्ता और निराकार जीवात्मा इस शरीरमें

स्थित है॥५३॥

 

यो जन्तुः स्वकृतैस्तैस्तैः कर्मभिर्नित्यदुःखितः ॥ ५४ ॥

स दुःखप्रतिघातार्थं हन्ति जन्तूननेकधा ।

 

जो जीव अपने ही किये हुए विभिन्न कर्मोंके कारण सदा दुःखी रहता है, वही उस दुःखका निवारण करनेके लिये नाना प्रकारके प्राणियोंकी हत्या करता है ॥ ५४ ॥

 

ततः कर्म समादत्ते पुनरन्यन्नवं बहु ॥ ५५ ॥

तप्यतेऽथ पुनस्तेन भुक्त्वापथ्यमिवातुरः ।

 

तदनन्तर वह और भी बहुत-से नये-नये कर्म करता है और

जैसे रोगी अपथ्य खाकर दुःख पाता है, उसी प्रकार उस कर्मसे वह अधिकाधिक कष्ट पाता रहता है ॥ ५५ ॥

 

अजस्त्रमेव मोहान्धो दुःखेषु सुखसंज्ञितः ॥ ५६ ॥

बध्यते मथ्यते चैव चैव कर्मभिर्मन्थवत् सदा ।

 

जो मोहसे अन्धा (विवेकशून्य) हो गया है, वह सदा ही दुःखद भोगों में ही सुखबुद्धि कर लेता है और मथानी की भाँति कर्मों से बँधता एवं मथा जाता है॥५६॥

 

ततो निबद्धः स्वां योनिं कर्मणामुदयादिह ॥ ५७ ॥

परिभ्रमति संसारं चक्रवद् बहुवेदनः ।

 

फिर प्रारब्ध कर्मोंके उदय होनेपर वह बद्ध प्राणी कर्मके अनुसार जन्म पाकर संसारमें नाना प्रकारके दुःख भोगता हुआ उसमें चक्रकी भाँति घूमता रहता है ॥ ५७ ॥

 

स त्वं निवृत्तबन्धस्तु निवृत्तश्चापि कर्मतः ॥ ५८ ॥

सर्ववित् सर्वजित् सिद्धो भव भावविवर्जितः ।

 

इसलिये तुम कर्मोंसे निवृत्त, सब प्रकारके बन्धनों से मुक्त, सर्वज्ञ, सर्वविजयी, सिद्ध और सांसारिक भावनासे रहित हो जाओ ॥ ५८ ॥

 

संयमेन नवं बन्धं निवर्त्य तपसो बलात् ।

सम्प्राप्ता बहव: सिद्धिमप्यबाधां सुखोदयाम् ॥ ५९ ॥

 

बहुत-से ज्ञानी पुरुष संयम और तपस्याके बलसे नवीन बन्धनोंका उच्छेद करके अनन्त सुख देनेवाली अबाध सिद्धिको प्राप्त हो चुके हैं ॥ ५९ ॥

 

॥ इति श्रीमहाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि नारदगीतायां प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से



5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और सराहनीय कार्य

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  2. ॐ नमो नारायण 🙏🙏

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  3. 🥀🌹💐🥀जय श्री हरि: 🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  4. 🌺🌿🌸ॐ नमो नारायण🙏
    ।। जय श्री हरि: ।।
    ॐ श्री परमात्मने नम:
    नारायण नारायण नारायण नारायण ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏💟🙏🌹🙏

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