सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

मानस में नाम-वन्दना (पोस्ट.. 02)

 

|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||

 

गिरा और बीचिये दोनों स्त्रीलिंग पद हैं, अरथ और जलये दोनों पुँल्लिंग पद हैं । ये दोनों दृष्टान्त सीता और रामकी परस्पर अभिन्नता बतानेके लिये दिये गये हैं । इनका उलट-पुलट करके प्रयोग किया है । पहले गिरास्त्रीलिंग पद कहकर अरथपुँल्लिंग पद कहा, यह तो ठीक है; क्योंकि पहले सीता और उसके बाद राम हैं, पर दूसरे उदाहरणमें उलट दिया अर्थात् जल’[*] पुँल्लिंग पद पहले रखा और उसके साथ बीचिस्त्रीलिंग पद बादमें रखा । इसका तात्पर्य रामसीताहुआ । इस प्रकार कहनेसे दोनोंकी अभिन्नता सिद्ध होती है । सीतारामसब लोग कहते हैं, पर रामसीताऐसा नहीं कहते हैं । जब भगवान्‌के प्रति विशेष प्रेम बढ़ता है, उस समय सीता और राम भिन्न-भिन्न नहीं दीखते । इस कारण किसको पहले कहें, किसको पीछे कहेंयह विचार नहीं रहता, तब ऐसा होता है । श्रीभरतजी महाराज जब चित्रकूट जा रहे हैं तो प्रयागमें प्रवेश करते समय कहते हैं

 

भरत  तीसरे  पहर   कहँ   कीन्ह   प्रबेसु   प्रयाग ।

कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग ॥

                                                    ………….(मानस, अयोध्याकाण्ड, दोहा २०३)

 

प्रेममें उमँग-उमँगकर रामसिय-रामसिय कहने लगते हैं । उस समय प्रेमकी अधिकताके कारण दोनोंकी एकताका अनुभव होता है । इसलिये चाहे श्रीसीताराम कहोचाहे रामसीता कहो, ये दोनों अभिन्न हैं । ऐसे श्रीसीतारामजीकी वन्दना करते हैं । अब इससे आगे नाम महाराजकी वन्दना करके नौ दोहोंमें नाममहिमाका वर्णन करते हैं ।

एक नाम-जप होता है और एक मन्त्र-जप होता है ।  रामनाम मन्त्र भी है और नाम भी है । नाममें सम्बोधन होता है तथा मन्त्रमें नमन और स्वाहा होता है । जैसे रामाय नमःयह मन्त्र है । इसका विधिसहित अनुष्ठान होता है और राम ! राम !! राम !!! ऐसे नाम लेकर केवल पुकार करते हैं ।  रामनामकी पुकार विधिरहित होती है । इस प्रकार भगवान्‌को सम्बोधन करनेका तात्पर्य यह है कि हम भगवान्‌को पुकारें, जिससे भगवान्‌की दृष्टि हमारी तरफ खिंच जाय ।

 

कैसा ही क्यों न जन नींद सोता ।

वो नाम लेते  ही  सुबोध  होता ॥

 

जैसे, सोये हुए किसी व्यक्तिको पुकारें तो वह अपना नाम सुनते ही नींदसे जग जाता है, ऐसे ही राम ! राम !! राम !!! करनेसे रामजी हमारी तरफ खिंच जाते हैं । जैसे, एक बच्चा माँ-माँ पुकारता है तो माताओंका चित्त उस बच्चेकी तरफ आकृष्ट हो जाता है । जिनके छोटे बालक हैं, उन सबका एक बार तो उस बालककी तरफ चित्त खिंचेगा, पर उठकर वही माँ दौड़ेगी, जिसको वह बच्चा अपनी माँ मानता है । माँ नाम तो उन सबका ही है, जिनके बालक हैं । फिर वे सब क्यों नहीं दौड़तीं ? सब कैसे दौड़ें ! वह बालक तो अपनी माँ को ही पुकारता है । दूसरी माताओंके कितने ही सुन्दर गहने हों, सुन्दर कपड़े हों, कितना ही अच्छा स्वभाव हो, पर उनको वह अपनी माँ नहीं मानता । वह तो अपनी माँको ही चाहता है,इसलिये उस बालककी माँ ही उसकी तरफ खिंचती है । ऐसे ही राम-रामहम आर्त होकर पुकारें और भगवान्‌को ही अपना मानें तो भगवान् हमारी तरफ खिंच जायेंगे ।

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[*] जलशब्द संस्कृत भाषाके अनुसार नपुंसकलिंग है, पर हिन्दी में जलशब्द पुँल्लिंग माना गया है । हिन्दी में नपुंसक लिंग होता ही नहीं ।

 

राम !   राम !!   राम !!!

 

(शेष आगामी पोस्ट में )

---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की मानस में नाम-वन्दनापुस्तकसे




2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌸💐🌺जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    श्री राम जय राम जय जय राम
    जय श्री राम जय जय सियाराम

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