सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

भगवद्भक्त का महत्त्व




 श्री परमात्मने नम:

 

श्रीभगवान् कहते हैं— मुझ में भक्ति रखनेवाला मानव मेरे गुणों से सम्पन्न होकर मुक्त हो जाता है । उसकी वृत्ति गुण का अनुसरण करने लगती है । वह सदा मेरी कथा – वार्ता में लगता है । मेरा गुणानुवाद सुनने मात्र से वह आनन्द में तन्मय हो उठता है । उसका शरीर पुलकित हो जाता है और वाणी गद्गद हो जाती है। उसकी आँखों में आँसू भर आते और वह अपनी सुधि-बुधि खो बैठता है । मेरी पवित्र सेवा में नित्य नियुक्त रहने के कारण सुख, चार प्रकार की सालोक्यादि मुक्ति,  ब्रह्मा का पद अथवा अमरत्व कुछ भी पाने की अभिलाषा वह नहीं करता । ब्रह्मा, इन्द्र एवं मनु की उपाधि तथा स्वर्ग के राज्य का सुख - ये सभी परम दुर्लभ है; किंतु मेरा भक्त स्वप्न में भी इनकी इच्छा नहीं करता ।

 

मद्भक्तियुक्तो मर्त्यश्च स मुक्तो मद्गुणान्वितः ।

मद्गुणाधीनवृत्तिर्यः कथाविष्टश्च संततम् ॥

मगुणश्रुतिमात्रेण सानन्दः पुलकान्वितः ।

सगद्गदः साश्रुनेत्रः स्वात्मविस्मृत एव च ॥

न वाञ्छति सुखं मुक्तिं सालोक्यादिचतुष्टयम् ।

ब्रह्मत्वममरत्वं वा तद्वाञ्छा मम सेवने ॥

इन्द्रत्वं च मनुत्वं च ब्रह्मत्वं च सुदुर्लभम् ।

स्वर्गराज्यादिभोगं च स्वप्नेऽपि च न वाञ्छति ॥

 

………..(देवीभागवत, नवम स्कन्ध )

......गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “परलोक और पुनर्जन्मांक” पुस्तक से (कोड 572)

 




2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹💖🥀जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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