॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--पहला अध्याय..(पोस्ट०८)
श्रीसूतजीसे शौनकादि ऋषियों का प्रश्न
कलिमागतमाज्ञाय क्षेत्रेऽस्मिन् वैष्णवे वयम् ।
आसीना दीर्घसत्रेण कथायां सक्षणा हरेः ॥ २१ ॥
त्वं नः संदर्शितो धात्रा दुस्तरं निस्तितीर्षताम् ।
कलिं सत्त्वहरं पुंसां कर्णधार इवार्णवम् ॥ २२ ॥
ब्रूहि योगेश्वरे कृष्णे ब्रह्मण्ये धर्मवर्मणि ।
स्वां काष्ठामधुनोपेते धर्मः कं शरणं गतः ॥ २३ ॥
कलियुगको आया जानकर इस वैष्णवक्षेत्रमें हम दीर्घकालीन सत्रका संकल्प करके बैठे हैं। श्रीहरिकी कथा सुननेके लिये हमें अवकाश प्राप्त है ॥ २१ ॥ यह कलियुग अन्त:करणकी पवित्रता और शक्तिका नाश करनेवाला है। इससे पार पाना कठिन है। जैसे समुद्रसे पार जानेवालोंको कर्णधार मिल जाय, उसी प्रकार इससे पार पानेकी इच्छा रखनेवाले हमलोगोंसे ब्रह्माने आपको मिलाया है ॥ २२ ॥ धर्मरक्षक, ब्राह्मणभक्त, योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्णके अपने धाममें पधार जानेपर धर्म ने अब किसकी शरण ली है—यह बताइये ॥ २३ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
प्रथमस्कन्धे नैमिषीयोपाख्याने प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🙏🚩🦠🌼हे गोविन्द 🌿🍁🌼🦠🚩🙏🧎♂️
जवाब देंहटाएं🌼🌿🌾जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण