शुक्रवार, 15 मार्च 2024

श्रीगर्ग संहिता का संक्षिप्त परिचय


 

श्रीगर्ग संहिता का संक्षिप्त परिचय

 

श्रीगर्ग संहिता यदुकुल के महान् आचार्य महामुनि श्रीगर्ग की रचना है। यह सारी संहिता अत्यन्त मधुर श्रीकृष्णलीला से परिपूर्ण है। श्रीराधाकी दिव्य माधुर्यभावमिश्रित लीलाओं का इसमें विशद वर्णन है। श्रीमद्भागवत में जो कुछ सूत्ररूप में  कहा गया है, गर्ग संहिता में वही विशद वृत्तिरूप में वर्णित है। एक प्रकार से यह श्रीमद्भागवतोक्त श्रीकृष्णलीला का महाभाष्य है । श्रीमद्भागवत में भगवान् श्रीकृष्णकी पूर्णता के सम्बन्ध में महर्षि व्यास ने 'कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्' – इतना ही कहा है, महामुनि गर्गाचार्य ने-

यस्मिन् सर्वाणि तेजांसि विलीयन्ते स्वतेजसि ।

तं वदन्ति परे साक्षात् परिपूर्णतमं स्वयम् ॥

-- कहकर श्रीकृष्णमें  समस्त भागवत-तेजों के प्रवेश का वर्णन करके श्रीकृष्ण की परिपूर्णतमता का वर्णन किया है।

श्रीकृष्णकी मधुरलीलाकी रचना हुई है दिव्य 'रस' के द्वारा; उस रसका रास में प्रकाश हुआ है । श्रीमद्भागवत में उस रास के केवल एक बार का वर्णन पाँच अध्यायों में किया गया है; किंतु इस गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड में, अश्वमेधखण्डके प्रभासमिलन के समय और उसी अश्वमेधखण्ड के दिग्विजय के अनन्तर लौटते समय-यों तीन बार कई अध्यायों में उसका बड़ा सुन्दर वर्णन है। परम प्रेमस्वरूपा, श्रीकृष्ण से नित्य अभिन्नस्वरूपा शक्ति श्रीराधाजीके दिव्य आकर्षण से श्रीमथुरानाथ एवं श्रीद्वारकाधीश श्रीकृष्ण ने बार-बार गोकुल में पधारकर नित्यरासेश्वरी, नित्यनिकुञ्जेश्वरी के साथ महारासकी दिव्य लीला की है— इसका विशद वर्णन है। इसके माधुर्यखण्ड में विभिन्न गोपियोंके   बड़ा ही सुन्दर वर्णन है । और भी बहुत-सी नयी-नयी कथाएँ हैं ।

यह संहिता भक्त-भावुकों के लिये परम समादर की वस्तु है; क्योंकि इसमें श्रीमद्भागवत के गूढ तत्त्वों का स्पष्ट रूप में उल्लेख है ।

----गीताप्रेस, गोरखपुर

 



2 टिप्‍पणियां:

  1. 💖🕉️🥀🌷जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    श्री राधेकृष्णाभ्याम् नमः
    जय श्री राधे गोविन्द

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