बुधवार, 6 मार्च 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - सातवां अध्याय..(पोस्ट..०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--सातवाँ अध्याय..(पोस्ट ०३)

अश्वत्थामाद्वारा द्रौपदी के पुत्रोंका मारा जाना और 
अर्जुनके द्वारा अश्वत्थामाका मानमर्दन

परीक्षितोऽथ राजर्षेः जन्मकर्मविलापनम् ।
संस्थां च पाण्डुपुत्राणां वक्ष्ये कृष्णकथोदयम् ॥ १२ ॥
यदा मृधे कौरवसृञ्जयानां
     वीरेष्वथो वीरगतिं गतेषु ।
वृकोदराविद्धगदाभिमर्श
     भग्नोरुदण्डे धृतराष्ट्रपुत्रे ॥ १३ ॥
भर्तुः प्रियं द्रौणिरिति स्म पश्यन्
     कृष्णासुतानां स्वपतां शिरांसि ।
उपाहरद् विप्रियमेव तस्य
     जुगुप्सितं कर्म विगर्हयन्ति ॥ १४ ॥
माता शिशूनां निधनं सुतानां
     निशम्य घोरं परितप्यमाना ।
तदारुदद् बाष्पकलाकुलाक्षी
     तां सांत्वयन्नाह किरीटमाली ॥ १५ ॥
तदा शुचस्ते प्रमृजामि भद्रे
     यद्‍ब्रह्मबंधोः शिर आततायिनः ।
गाण्डीवमुक्तैः विशिखैरुपाहरे
     त्वाक्रम्य यत्स्नास्यसि दग्धपुत्रा ॥ १६ ॥
इति प्रियां वल्गुविचित्रजल्पैः
     स सान्त्वयित्वाच्युतमित्रसूतः ।
अन्वाद्रवद् दंशित उग्रधन्वा
     कपिध्वजो गुरुपुत्रं रथेन ॥ १७ ॥

शौनकजी ! अब मैं राजर्षि परीक्षित्‌के जन्म, कर्म और मोक्षकी तथा पाण्डवोंके स्वर्गारोहणकी कथा कहता हूँ; क्योंकि इन्हींसे भगवान्‌ श्रीकृष्णकी अनेकों कथाओंका उदय होता है ॥ १२ ॥ जिस समय महाभारत युद्धमें कौरव और पाण्डव दोनों पक्षोंके बहुत-से वीर वीरगतिको प्राप्त हो चुके थे और भीमसेनकी गदाके प्रहारसे दुर्योधनकी जाँघ टूट चुकी थी, तब अश्वत्थामा ने अपने स्वामी दुर्योधन का प्रिय कार्य समझकर द्रौपदीके सोते हुए पुत्रोंके सिर काटकर उसे भेंट किये, यह घटना दुर्योधनको भी अप्रिय ही लगी; क्योंकि ऐसे नीच कर्मकी सभी निन्दा करते हैं ॥ १३-१४ ॥ उन बालकोंकी माता द्रौपदी अपने पुत्रोंका निधन सुनकर अत्यन्त दुखी हो गयी। उसकी आँखोंमें आँसू छलछला आये—वह रोने लगी। अर्जुनने उसे सान्त्वना देते हुए कहा ॥ १५ ॥ ‘कल्याणि ! मैं तुम्हारे आँसू तब पोछूँगा, जब उस आततायी[*] ब्राह्मणाधम का सिर गाण्डीव-धनुषके बाणोंसे काटकर तुम्हें भेंट करूँगा और पुत्रोंकी अन्त्येष्टि क्रियाके बाद तुम उसपर पैर रखकर स्नान करोगी’ ॥ १६ ॥ अर्जुनने इन मीठी और विचित्र बातोंसे द्रौपदीको सान्त्वना दी और अपने मित्र भगवान्‌ श्रीकृष्णकी सलाहसे उन्हें सारथि बनाकर कवच धारणकर और अपने भयानक गाण्डीव धनुषको लेकर वे रथपर सवार हुए तथा गुरुपुत्र अश्वत्थामाके पीछे दौड़ पड़े ॥ १७ ॥ 

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[*] आग लगाने वाला, जहर देने वाला, बुरी नीयत से हाथ में शस्त्र ग्रहण करनेवाला, धन लूटने वाला, खेत और स्त्री को छीननेवाला—ये छ: ‘आततायी’ कहलाते हैं।

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹🙏जय श्री हरि 🙏🌹

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  2. 🌺🍂🌺जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण हरि: ! हरि: !!

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