गुरुवार, 7 मार्च 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - सातवां अध्याय..(पोस्ट..०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--सातवाँ अध्याय..(पोस्ट ०४)

अश्वत्थामाद्वारा द्रौपदी के पुत्रोंका मारा जाना और 
अर्जुनके द्वारा अश्वत्थामाका मानमर्दन

तमापतन्तं स विलक्ष्य दूरात्
     कुमारहोद्विग्नमना रथेन ।
पराद्रवत् प्राणपरीप्सुरुर्व्यां
     यावद्‍गमं रुद्रभयाद् यथार्कः ॥ १८ ॥
यदाशरणमात्मानं ऐक्षत श्रान्तवाजिनम् ।
अस्त्रं ब्रह्मशिरो मेने आत्मत्राणं द्विजात्मजः ॥ १९ ॥
अथोपस्पृश्य सलिलं सन्दधे तत्समाहितः ।
अजानन् उपसंहारं प्राणकृच्छ्र उपस्थिते ॥ २० ॥
ततः प्रादुष्कृतं तेजः प्रचण्डं सर्वतो दिशम् ।
प्राणापदमभिप्रेक्ष्य विष्णुं जिष्णुरुवाच ह ॥ २१ ॥

(द्रौपदीके सोते हुए ) बच्चोंकी हत्या से अश्वत्थामा का भी मन उद्विग्न हो गया था। जब उसने दूर से ही देखा कि अर्जुन मेरी ओर झपटे हुए आ रहे हैं, तब वह अपने प्राणों की रक्षा के लिये पृथ्वी पर जहाँतक भाग सकता था, रुद्रसे भयभीत सूर्य [*] की भाँति भागता रहा ॥ १८ ॥ जब उसने देखा कि मेरे रथके घोड़े थक गये हैं और मैं बिलकुल अकेला हूँ, तब उसने अपने को बचाने का एकमात्र साधन ब्रह्मास्त्र ही समझा ॥ १९ ॥ यद्यपि उसे ब्रह्मास्त्र को लौटाने की विधि मालूम न थी, फिर भी प्राणसङ्कट देखकर उसने आचमन किया और ध्यानस्थ होकर ब्रह्मास्त्र का सन्धान किया ॥ २० ॥ उस अस्त्र से सब दिशाओं में एक बड़ा प्रचण्ड तेज फैल गया। अर्जुन ने देखा कि अब तो मेरे प्राणोंपर ही आ बनी है, तब उन्होंने श्रीकृष्णसे प्रार्थना की ॥ २१ ॥

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[*]शिवभक्त विद्युन्माली दैत्यको जब सूर्यने हरा दिया, तब सूर्यपर क्रोधित हो भगवान्‌ रुद्र त्रिशूल हाथमें लेकर उनकी ओर दौड़े । उस समय सूर्य भागते-भागते पृथ्वीपर काशीमें आकर गिरे, इसीसे वहाँ उनका ‘लोलार्क’ नाम पड़ा।

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🍁🍂🌹🍁जय श्री हरि:🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव

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