॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--नवाँ अध्याय..(पोस्ट ०६)
युधिष्ठिरादिका भीष्मजीके पास जाना और भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति
करते हुए भीष्मजीका प्राणत्याग करना
भक्त्यावेश्य मनो यस्मिन् वाचा यन्नाम कीर्तयन् ।
त्यजन् कलेवरं योगी मुच्यते कामकर्मभिः ॥ २३ ॥
स देवदेवो भगवान् प्रतीक्षतां
कलेवरं यावदिदं हिनोम्यहम् ।
प्रसन्नहासारुणलोचनोल्लसन्
मुखाम्बुजो ध्यानपथश्चतुर्भुजः ॥ २४ ॥
सूत उवाच ।
युधिष्ठिरः तत् आकर्ण्य शयानं शरपञ्जरे ।
अपृच्छत् विविधान् धर्मान् ऋषीणां चानुश्रृण्वताम् ॥ २५ ॥
पुरुषस्वभावविहितान् यथावर्णं यथाश्रमम् ।
वैराग्यराग उपाधिभ्यां आम्नात उभयलक्षणान् ॥ २६ ॥
दानधर्मान् राजधर्मान् मोक्षधर्मान् विभागशः ।
स्त्रीधर्मान् भगवत् धर्मान् समास व्यास योगतः ॥ २७ ॥
धर्मार्थकाममोक्षांश्च सहोपायान् यथा मुने ।
नानाख्यान इतिहासेषु वर्णयामास तत्त्ववित् ॥ २८ ॥
(भीष्मपितामह कहते हैं) भगवत्परायण योगी पुरुष भक्तिभाव से इनमें अपना मन लगाकर और वाणीसे इनके नामका कीर्तन करते हुए शरीरका त्याग करते हैं और कामनाओंसे तथा कर्मके बन्धनसे छूट जाते हैं ॥ २३ ॥ वे ही देवदेव भगवान् अपने प्रसन्न हास्य और रक्तकमलके समान अरुण नेत्रोंसे उल्लसित मुखवाले चतुर्भुजरूप से, जिसका और लोगों को केवल ध्यानमें दर्शन होता है, तबतक यहीं स्थित रहकर प्रतीक्षा करें, जब तक मैं इस शरीरका त्याग न कर दूँ’॥२४ ॥
सूतजी कहते हैं—युधिष्ठिरने उनकी यह बात सुनकर शर-शय्यापर सोये हुए भीष्मपितामह से बहुत-से ऋषियोंके सामने ही नाना प्रकारके धर्मोंके सम्बन्धमें अनेकों रहस्य पूछे ॥ २५ ॥ तब तत्त्ववेत्ता भीष्म-पितामह ने वर्ण और आश्रमके अनुसार पुरुषके स्वाभाविक धर्म और वैराग्य तथा रागके कारण विभिन्नरूप से बतलाये हुए निवृत्ति और प्रवृत्तिरूप द्विविध धर्म, दानधर्म, राजधर्म, मोक्षधर्म, स्त्रीधर्म और भगवद्धर्म—इन सबका अलग-अलग संक्षेप और विस्तारसे वर्णन किया। शौनकजी ! इनके साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—इन चारों पुरुषार्थोंका तथा इनकी प्राप्तिके साधनोंका अनेकों उपाख्यान और इतिहास सुनाते हुए विभागश: वर्णन किया ॥२६-२८॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🪷🌹🍂🪷जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे 🙏🌹हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे 🙏🌹🙏
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