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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(गोलोकखण्ड)
दसवाँ
अध्याय (पोस्ट 02)
कंस
के अत्याचार; बलभद्रजी का अवतार
तथा व्यासदेव द्वारा उनका स्तवन
उग्रसेनानुगान्दृष्ट्वा
कंसवीराः समुत्थिताः ।
तैः सार्द्धमभवद्युद्धं सभामंडपमध्यतः ॥१६॥
द्वारदेशेऽपि वीराणां युद्धं जातं परस्परम् ।
खड्गप्रहारैरयुतं जनानां निधनं गतम् ॥१७॥
कंसो गृहीत्वाथ गदां पितुः सेनां ममर्द ह ।
कंसस्य गदया स्पृष्ट्वा केचिच्छिन्नललाटकाः ॥१८॥
भिन्नपादा भिन्नमुखाश्छिन्नाशाश्छिन्नबाहवः ।
अधोमुखा ऊर्ध्वमुखाः सशस्त्राः पतिताः क्षणात् ॥१९॥
वमन्तो रुधिरं वीरा मूर्छिता निधनं गताः ।
सभामंडपमारक्तं दृश्यते क्षतजस्रवात् ॥२०॥
इत्थं मदोत्कटः कंसः संनिपात्योद्भटान् रिपून् ।
क्रोधाढ्यो राजराजेन्द्रं जग्राह पितरं खलः ॥२१॥
नृपासनात्संगृहीत्वा बद्ध्वा पाशैश्च तं खलः ।
तन्मित्रैश्च नृपैः सार्द्धं कारागारे रुरोध ह ॥२२॥
मधूनां शूरसेनानां देशानां सर्वसंपदाम् ।
सिंहासने चोपविश्य स्वयं राज्यं चकार ह ॥२३॥
पीडिता यादवाः सर्वे संबंधस्य मिषैस्त्वरम् ।
चतुर्दिशान्तरं देशान् विविशुः कालवेदिनः ॥२४॥
देवक्याः सप्तमे गर्भे हर्षशोकविवर्द्धने ।
व्रजं प्रणीते रोहिण्यामनन्ते योगमायया ॥२५॥
अहो गर्भः क्व विगत इत्यूचुर्माथुरा जनाः ॥२६॥
अथ व्रजे पंचदिनेषु भाद्रे
स्वातौ च षष्ठ्यां च सिते बुधे च ।
उच्चैर्गृहैः पंचभिरावृते च
लग्ने तुलाऽऽख्ये दिनमध्यदेशे ॥२७॥
सुरेषु वर्षत्सु सुपुष्पवर्षं
घनेषु मुंचत्सु च वारिबिन्दून् ।
बभूव देवो वसुदेवपत्न्यां
विभासयन्नन्दगृहं स्वभासा ॥२८॥
नंदोऽपि कुर्वन् शिशुजातकर्म
ददौ द्विजेभ्यो नियुतं गवां च ।
गोपान् समाहूय सुगायकानां
रावैर्महामंगलमातनोति ॥२९॥
द्वैपायनो देवलदेवरात-
वसिष्ठवाचस्पतिभिर्मया च ।
आगत्य तत्रैव समास्थितोऽभू-
त्पाद्यादिभिर्नन्दकृतैः प्रसन्नः ॥३०॥
नंदराज उवाच -
सुंदरो बालकः कोऽयं न दृश्यो यत्समः क्वचित् ।
कथं पंचदिनाज्जातस्तन्मे ब्रूहि महामुने ॥३१॥
उग्रसेन
के अनुगामियों को युद्धके लिये उद्यत देख कंसके निजी वीर सैनिक भी उनका सामना
करनेके लिये खड़े हुए। राजसभाके मण्डपमें ही उन दोनों दलोंका परस्पर युद्ध होने
लगा। राजद्वारपर भी उन दोनों दलोंके वीरोंमें परस्पर युद्ध छिड़ गया। वे सब लोग
खुलकर एक- दूसरेपर खड्गका प्रहार करने लगे। इस संघर्षमें दस हजार मनुष्य खेत रहे ।
तदनन्तर कंसने गदा हाथमें लेकर पिताकी सेनाको कुचलना आरम्भ किया। उसकी गदासे छू
जानेसे ही कितने ही लोगोंके मस्तक फट गये, कितनोंके
पाँव कट गये, नख विदीर्ण हो गये, बाँहें
कट गयीं और उनकी आशापर पानी फिर गया। कोई औंधे मुँह और कोई उतान होकर अस्त्र-
शस्त्र लिये क्षणभरमें धराशायी हो गये। बहुत-से वीर खून उगलते हुए मूर्च्छित हो
काल के गाल में चले गये। वहाँ इतना रक्त प्रवाहित हुआ कि सारा सभामण्डप रँग गया ॥ १६-२०
॥
राजराजेश्वर
! इस प्रकार दुष्ट एवं मदमत्त कंस ने कुपित हो उद्भट शत्रुओं को धराशायी करके अपने
पिता को कैद कर लिया। उन्हें राजसिंहसनसे उतारकर उस दुष्टने पाशोंसे बाँधा और उनके
मित्रोंके साथ उन्हें भी कारागारमें बंद कर दिया। मधु और शूरसेन की सारी
सम्पत्तिओं पर अधिकार करके कंस स्वयं सिंहासनपर जा बैठा और राज्यशासन करने लगा ॥२१–२३॥
समस्त
पीड़ित यादव सम्बन्धी के घरपर जानेके बहाने तुरंत चारों दिशाओंमें विभिन्न देशोंके
भीतर जाकर रहने लगे और उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। देवकीका सातवाँ गर्भ उनके
लिये हर्ष और शोक दोनों की वृद्धि करनेवाला हुआ, उसमें साक्षात् अनन्त - देव अवतीर्ण हुए थे। योगमायाने देवकीके उस गर्भको
खींचकर व्रजमें रोहिणीकी कुक्षिके भीतर पहुँचा दिया। ऐसा हो जानेपर मथुरा के लोग
खेद प्रकट करते हुए कहने लगे— 'अहो ! बेचारी देवकीका गर्भ
कहाँ चला गया ? कैसे गिर गया ?' ॥२४–२६॥
व्रज
में उस गर्भ को गये पाँच ही दिन बीते थे कि भाद्रपद शुक्ला षष्ठीको,
स्वाती नक्षत्रमें, बुधके दिन वसुदेवकी पत्नी
रोहिणीके गर्भसे अनन्तदेवका प्राकट्य हुआ । उच्चस्थानमें स्थित पाँच ग्रहों से
घिरे हुए तुला लग्न में, दोपहर के समय बालक का जन्म हुआ। उस
जन्मवेला में जब देवता फूल बरसा रहे थे और बादल वारिबिन्दु बिखेर रहे थे, प्रकट हुए अनन्तदेवने अपनी अङ्गकान्ति से नन्दभवन को उद्भासित कर दिया ॥२७–२८॥
नन्दरायजी
ने भी उस शिशुका जातकर्मसंस्कार करके ब्राह्मणों को दस लाख गौएँ दान कीं। गोपोंको
बुलाकर उत्तम गान-विद्यामें निपुण गायकोंके संगीतके साथ महान् मङ्गलमय उत्सव का
आयोजन किया । देवल, देवरात, वसिष्ठ, बृहस्पति और मुझ नारदके साथ आकर
श्रीकृष्णद्वैपायन व्यास भी वहाँ बैठे और नन्दजीके दिये हुए पाद्य आदि उपहारोंसे
अत्यन्त प्रसन्न हुए । २९ - ३० ॥
नन्दरायजीने
पूछा- महर्षियो ! यह सुन्दर बालक कौन है, जिसके
समान दूसरा कोई देखने में नहीं आता ? महामुने ! इसका जन्म
पाँच ही दिनों में कैसे हुआ ? यह मुझे बताइये ॥ ३१ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🌼🍂🌺🥀⭐जय श्री हरि:🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय
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