मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध ग्यारहवां अध्याय..(पोस्ट..०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०३)

द्वारका में श्रीकृष्णका राजोचित स्वागत

मधुभोजदशार्हार्ह कुकुरान्धक वृष्णिभिः ।
आत्मतुल्य बलैर्गुप्तां नागैर्भोगवतीमिव ॥ ११ ॥
सर्वर्तु सर्वविभव पुण्यवृक्षलताश्रमैः ।
उद्यानोपवनारामैः वृत पद्माकर श्रियम् ॥ १२ ॥
गोपुरद्वारमार्गेषु कृतकौतुक तोरणाम् ।
चित्रध्वजपताकाग्रैः अन्तः प्रतिहतातपाम् ॥ १३ ॥
सम्मार्जित महामार्ग रथ्यापणक चत्वराम् ।
सिक्तां गन्धजलैरुप्तां फलपुष्पाक्षताङ्‌कुरैः ॥ १४ ॥
द्वारि द्वारि गृहाणां च दध्यक्षत फलेक्षुभिः ।
अलङ्‌कृतां पूर्णकुम्भैः बलिभिः धूपदीपकैः ॥ १५ ॥

जैसे नाग अपनी नगरी भोगवती (पातालपुरी) की रक्षा करते हैं, वैसे ही भगवान्‌ की वह द्वारका पुरी भी मधु, भोज, दशार्ह, अर्ह, कुकुर, अन्धक और वृष्णिवंशी यादवोंसे, जिनके पराक्रमकी तुलना और किसी से भी नहीं की जा सकती, सुरक्षित थी ॥ ११ ॥ वह पुरी समस्त ऋतुओं के सम्पूर्ण वैभव से सम्पन्न एवं पवित्र वृक्षों एवं लताओं के कुञ्जों से युक्त थी। स्थान-स्थान पर फलों से पूर्ण उद्यान, पुष्पवाटिकाएँ एवं क्रीडावन थे। बीच-बीचमें कमलयुक्त सरोवर नगरकी शोभा बढ़ा रहे थे ॥ १२ ॥ नगरके फाटकों, महलके दरवाजों और सडक़ोंपर भगवान्‌के स्वागतार्थ बंदनवारें लगायी गयी थीं। चारों ओर चित्र-विचित्र ध्वजा-पताकाएँ फहरा रही थीं, जिनसे उन स्थानोंपर घामका कोई प्रभाव नहीं पड़ता था ॥ १३ ॥ उसके राजमार्ग, अन्यान्य सडक़ें, बाजार और चौक झाड़-बुहारकर सुगन्धित जलसे सींच दिये गये थे। और भगवान्‌ के स्वागतके लिये बरसाये हुए फल-फूल, अक्षत-अङ्कुर चारों ओर बिखरे हुए थे ॥ १४ ॥ घरोंके प्रत्येक द्वारपर दही, अक्षत, फल, ईख, जलसे भरे हुए कलश, उपहारकी वस्तुएँ और धूप-दीप आदि सजा दिये गये थे ॥ १५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🐚🍂🌹💐जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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