शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट 03)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

ग्यारहवाँ अध्याय  (पोस्ट 03)

 

भगवान्‌ का वसुदेव-देवकीमें आवेश; देवताओंद्वारा उनका स्तवन; आविर्भावकाल; अवतार-विग्रहकी झाँकी; वसुदेव-देवकीकृत भगवत्-स्तवन; भगवान् द्वारा उनके पूर्वजन्मके वृत्तान्तवर्णनपूर्वक अपनेको नन्दभवनमें पहुँचानेका आदेश; कंसद्वारा नन्दकन्या योगमायासे कृष्णके प्राकट्यकी बात जानकर पश्चात्ताप पूर्वक वसुदेव- देवकीको बन्धनमुक्त करना, क्षमा माँगना और दैत्योंको बाल-वध का आदेश देना

 

सतडित्‌घनदिव्यसौभगं
चलनीलालकवृन्दभृन्मुखम् ।
चलदंशु तमोहरं परं
शुभदं सुन्दरमंबुजेक्षणम् ॥२७॥
कृतपत्रविचित्रमंडनं
सततं कोटिमनोजमोहनम् ।
परिपूर्णतमं परात्परं
कलवेणुध्वनिवाद्यतत्परम् ॥२८॥
तमवेक्ष्य सुतं यदूत्तमो
हरिजन्मोत्सवफुल्ललोचनः ।
अथ विप्रजनेषु चाशु वै
नियुतं सन्मनसा गवां ददौ ॥२९॥
हरिमानकदुंदुभिः स्तवैः
स्तवनं तं प्रणिपत्य विस्मितः ।
अकरोदुदितप्रभूदयो
गतभीः सूतिगृहे कृतांजलिः ॥३०॥


श्रीवसुदेव उवाच -
एको यः प्रकृतिगुणैरनेकधासि
हर्ता त्वं जनक उतास्य पालकस्त्वम् ।
निर्लिप्तः स्फटिक इवाद्य देहवर्णै-
स्तस्मै श्रीभुवनपते नमामि तुभ्यम् ॥३१॥
एधःसु त्वनल इवात्र वर्तमानो
यो‍ऽन्तस्थो बहिरपि चाम्बरं यथा हि ।
आधारो धरणिरिवास्य सर्वसाक्षी
तस्मै ते नम इव सर्वगो नभस्वान् ॥३२॥
भूभारोद्‌भटहरणार्थमेव जातो
गोदेवद्विजनिजवत्सपालकोऽसि ।
गेहे मे भुवि पुरुषोत्तमोत्तमस्त्वं
कंसान्मां भुवनपते प्रपाहि पापात् ॥३३॥


श्रीनारद उवाच -
परिपूर्णतमं साक्षाच्छ्रीकृष्णं श्यामसुन्दरम् ।
ज्ञात्वा नत्वाथ तं प्राह देवकी सर्वदेवता ॥३४॥


श्रीदेवक्युवाच -
हे कृष्ण हे विगणिताण्डपते परेश
गोलोकधामधिषणध्वज आदिदेव ।
पूर्णेश पूर्ण परिपूर्णतम प्रभो मां
त्वं पाहि परमेश्वर कंसपापात् ॥३५॥


श्रीनारद उवाच -
तच्छ्रुत्वा भगवान्कृष्णः परिपूर्णतमः स्वयम् ।
सस्मितो देवकीं शौरिं प्राह स वृजिनार्दनः ॥३६॥

श्यामसुन्दर विग्रहपर सुशोभित वह पीताम्बर विद्युद्विलाससे विलसित नीलमेघके सौभाग्यपूर्ण सौन्दर्यको छीने लेता था। मुखके ऊपर शिरोदेशमें काले-काले घुँघराले केश शोभा पाते थे। मुखचन्द्रकी चञ्चल रश्मियाँ वहाँका सम्पूर्ण अन्धकार दूर किये देती थीं। वह परम सुन्दर शुभद आनन प्रफुल्ल इन्दीवर - सदृश युगल नेत्रोंसे सुशोभित था । उसपर विचित्र रीतिसे मनोहर पत्ररचना की गयी थी, जिससे मण्डित अभिराम मुख सदैव करोड़ों कामदेवोंको मोहे लेता था । वे परिपूर्णतम परात्पर भगवान् मधुर ध्वनिसे वेणु बजाने में तत्पर थे ॥ २७-२८ ॥

ऐसे पुत्र का अवलोकन करके यदुकुलतिलक वसुदेवजी के नेत्र भगवान् के जन्मोत्सवजनित आनन्दसे खिल उठे । फिर उन्होंने शीघ्र ही ब्राह्मणों को एक लाख गो-दान करने का मन-ही-मन संकल्प किया। सूतिकागार में प्रभु का आविर्भाव प्रत्यक्ष हो गया, इससे वसुदेवजीका सारा भय जाता रहा। वे अत्यन्त विस्मित हो, हाथ जोड़कर आदि-अन्तरहित श्रीहरिको प्रणाम करके, स्तोत्रों द्वारा उनका स्तवन करने लगे ।। २९-३० ॥

श्री वसुदेव जी बोले- भगवन् ! जो एकमात्र अद्वितीय हैं, वे ही परब्रह्म परमात्मा आप प्रकृति के सत्वगुणों के कारण अनेक रूपों में प्रतीत होते हैं | आप ही संहार, आप ही उत्पादक तथा आप ही इस जगत के पालक हैं | हे आदिदेव ! हे त्रिभुवनपते ! परमात्मन् ! जैसे स्फटिकमणि औपाधिक रंगोंसे लिप्त नहीं होती, उसी प्रकार आप देहके वर्णोंसे निर्लिप्त ही रहते हैं। ऐसे आप परमेश्वरको मेरा नमस्कार है ॥ ३१ ॥

जैसे ईंधनमें आग छिपी रहती है, उसी तरह आप अव्यक्तरूप से इस सम्पूर्ण जगत् में विद्यमान हैं; तथा जैसे आकाश सबके भीतर और बाहर भी रहता है, उसी प्रकार आप सबके भीतर और बाहर भी स्थित हैं। आप ही पृथ्वीकी भाँति इस समस्त जगत् के आधार हैं, सबके साक्षी हैं तथा वायु की भाँति सर्वत्र जानेकी शक्ति रखते हैं। आप गौ, देवता, ब्राह्मण, अपने भक्तजन तथा बछड़ों के पालक हैं और उद्भट भूभार का हरण करनेके लिये ही मेरे घर में अवतीर्ण हुए हैं। इस भूतलपर समस्त पुरुषोंत्तमों से भी उत्तम आप ही हैं। भुवनपते ! पापी कंससे मुझे बचाइये । ॥ ३२-३३ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं—मिथिलापते ! सर्व- देवतास्वरूपिणी देवकीको भी यह ज्ञात हो गया कि मेरे घरमें परिपूर्णतम भगवान् साक्षात् श्यामसुन्दर श्रीकृष्णका आविर्भाव हुआ है। अतः वे भी उन्हें नमस्कार करके बोलीं ॥ ३४ ॥

देवकीने कहा - हे सच्चिदानन्दघन श्रीकृष्ण ! हे अगणित ब्रह्माण्डोंके स्वामी ! हे परमेश्वर ! हे गोलोक- धाममन्दिर की ध्वजा ! हे आदिदेव ! हे पूर्णरूप ईश्वर ! हे परिपूर्णतम परमेश ! हे प्रभो ! आप पापी कंसके भय से मेरी रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये  ॥ ३५ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं— राजन् ! पिता-माताकी ओरसे किया गया वह स्तवन सुनकर पापनाशन साक्षात् परिपूर्णतम भगवान् श्रीकृष्ण मन्द मन्द मुस्कराते हुए देवकी तथा वसुदेवजीसे बोले - ॥ ३६ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🌿🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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