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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(गोलोकखण्ड)
बारहवाँ
अध्याय (पोस्ट 03)
श्रीकृष्ण
जन्मोत्सव की धूम; गोप-गोपियों का उपायन
लेकर आना; नन्द और यशोदा-रोहिणीद्वारा सबका यथावत् सत्कार;
ब्रह्मादि देवताओंका भी श्रीकृष्णदर्शनके लिये आगमन
श्रीनन्दराजसुतसंभवमद्भुतं
च
श्रुत्वा विसृज्य गृहकर्म तदैव गोप्यः ।
तूर्णं ययुः सबलयो व्रजराजगेहा-
नुद्यत्प्रमोदपरिपूरितहृन्महोऽङ्गाः ॥२३॥
आनन्दमंदिरपुरात्स्वगृहोन् व्रजन्त्यः
सर्वा इतस्तत उत त्वरमाव्रजन्त्यः ।
यानश्लथद्वसनभूषणकेशबन्धा
रेजुर्नरेन्द्र पथि भूपरिमुक्तमुक्ताः ॥२४॥
झंकारनूपुरनवांगदहेमचीर-
मञ्जीरहारमणिकुंडलमेखलाभिः ।
श्रीकंठसूत्रभुजकंकणबिंदुकाभिः
पूर्णेन्दुमंडलनवद्युतिभिर्विरेजुः ॥२५॥
श्रीराजिकालवणरात्रिविशेषचूर्णै-
र्गोधूमसर्षपयवैः करलालनैश्च ।
उत्तार्य बालकमुखोपरि चाशिषस्ताः
सर्वा ददुर्नृप जगुर्जगदुर्यशोदाम् ॥२६॥
गोप्य ऊचुः -
साधु साधु यशोदे ते दिष्ट्या दिष्ट्या व्रजेश्वरि ।
धन्या धन्या परा कुक्षिर्ययाऽयं जनितः सुतः ॥२७॥
इच्छा युक्तं कृतं ते वै देवेन बहुकालतः ।
रक्ष बालं पद्मनेत्रं सुस्मितं श्यामसुन्दरम् ॥२८॥
श्रीयशोदा उवाच -
भवदीयदयाशीर्भिर्जातः सौख्यं परं च मे ।
भवतीनामपि परं दिष्ट्या भूयादतः परम् ॥२९॥
हे रोहिणि महाबुद्धे पूजनं तु व्रजौकसाम् ।
आगतानां सत्कुलानां यथेष्टं हीप्सितं कुरु ॥३०॥
श्रीनारद उवाच -
रोहिणी राजकन्याऽपि तत्करौ दानशीलिनौ ।
तत्रापि नोदिता दाने ददावतिमहामनाः ॥३१॥
गौरवर्णा दिव्यवासा रत्नाभरणभूषिता ।
व्यचरद्रोहिणी साक्षात्पूजयंती व्रजौकसः ॥३२॥
परिपूर्णतमे साक्षाच्छ्रीकृष्णे व्रजमागते ।
नदत्सु नरतूर्येषु जयध्वनिरभून्महान् ॥३३॥
दधिक्षीरघृतैर्गोपा गोप्यो हैयंगवैर्नवैः ।
सिषिचुर्हर्षितास्तत्र जगुरुच्चैः परस्परम् ॥३४॥
बहिरन्तपुरेः जाते सर्वतो दधिकर्दमे ।
वृद्धाश्च स्थूलदेहाश्च पेतुर्हास्यं कृतं परैः ॥३५॥
सूताः पौराणिकाः प्रोक्ता मागधा वंशशंसकाः ।
वन्दिनस्त्वमलप्रज्ञाः प्रस्तावसदृशोक्तयः ॥३६॥
तेभ्यो नंदो महाराजः सहस्रं गाः पृथक् पृथक् ।
वासोऽलंकाररत्नानि हयेभानखिलान्ददौ ॥३७॥
श्रीनारदजी
कहते हैं- राजन् ! श्रीनन्दरायजीके यहाँ पुत्र होनेका अद्भुत समाचार सुनकर
गोपियोंके हर्षकी सीमा न रही। उनके हृदय, उनके
तन-मन परमानन्द से परिपूर्ण हो गये। वे घर के सारे काम-काज तत्काल छोड़कर
भेंट-सामग्री लिये तुरंत व्रजराज के भवन में जा पहुँचीं । नरेन्द्र ! अपने घरसे
नन्दमन्दिर तक इधर-उधर बड़ी उतावली के साथ आती जातीं सब गोपियाँ रास्ते की भूमिपर
मोती लुटाती चलती थीं। शीघ्रतापूर्वक आने-जानेसे उनके वस्त्र, आभूषण तथा केशोंके बन्धन भी ढीले पड़ गये थे; उस
दशामें उनकी बड़ी शोभा हो रही थी। झनकारते हुए नूपुर, नये
बाजूबंद, सुनहरे लहँगे, मञ्जीर,
हार, मणिमय कुण्डल, करधनी,
कण्ठसूत्र, हाथोंके कंगन तथा भालदेशमें लगी
हुई बेंदियोंकी नयी-नयी छटाओंसे उनकी छवि देखते ही बनती थी। नरेश्वर ! वे सब की सब
राई - नोन, हल्दीके विशेष चूर्ण, गेहूंके
आटे, पीली सरसों तथा जौ आदि हाथोंमें लेकर बड़े लाड़से
लालाके मुखपर उतारती हुई उसे आशीर्वाद देती थीं। यह सब करके उन्होंने यशोदाजी से
कहा – ॥ २३–२६॥
गोपियाँ
बोलीं- यशोदाजी ! बहुत उत्तम, बहुत अच्छा हुआ
। अहोभाग्य ! आज परम सौभाग्यका दिन है। आप धन्य हैं और आपकी कोख धन्य है, जिसने ऐसे बालकको जन्म दिया। दीर्घकालके बाद दैवने आज आपकी इच्छा पूरी की
है। कैसे कमल- जैसे नेत्र हैं इस श्यामसुन्दर बालकके ! कितनी मनोहर मुसकान है इसके
होठोंपर बड़ी सँभालके साथ इसका लालन-पालन कीजिये ।। २७-२८ ॥
श्रीयशोदा
ने कहा - बहिन ! आप सबकी दया और आशीर्वादसे ही मेरे घरमें यह सुख आया है,
यह आनन्दोत्सव प्राप्त हुआ है। मेरे ऊपर आपकी सदा ही बड़ी दया रही
है। इसके बाद आप सबको भी दैव- कृपासे ऐसा ही परम सुख प्राप्त हो – यह मेरी मङ्गल-
कामना है । बहिन रोहिणी ! तुम बड़ी बुद्धिमती हो । सब कार्य बड़े अच्छे ढंगसे करती
हो। अपने घर आयी हुई ये व्रजवासिनी गोपियाँ बड़े उत्तम कुलकी हैं। तुम इनका पूजन —
स्वागतसत्कार करो। अपनी इच्छाके अनुसार इन सबकी मनोवाञ्छा पूर्ण करो ।। २९-३० ॥
श्रीनारदजी
कहते हैं- राजन् ! रोहिणी जी भी राजा की बेटी थीं। उनके हाथ तो स्वभाव से ही
दानशील थे, उसपर भी यशोदाजी ने दान करनेकी
प्ररेणा दे दी। फिर क्या था ? उन्होंने अत्यन्त उदारचित्त
होकर दान देना आरम्भ किया। उनकी अङ्गकान्ति गौर वर्णकी थी शरीर पर दिव्य वस्त्र
शोभा पाते थे और वे रत्नमय आभूषणों से विभूषित थीं । रोहिणी जी साक्षात् लक्ष्मी की
भाँति व्रजाङ्गनाओं का सत्कार करती हुई सब ओर विचरने लगीं ।। ३१-३२ ॥
साक्षात्
परिपूर्णतम भगवान् श्रीकृष्णके व्रजमें पधारनेपर सब ओर मानव - वाद्य बजने लगे ।
बड़े
जोर-जोरसे जै-जैकारकी ध्वनि होने लगी। उस समय गोप दही,
दूध और घीसे तथा गोपाङ्गनाएँ ताजे माखनके लौंदों से एक-दूसरेको
हर्षोल्लाससे भिगोने और उच्चस्वरसे गीत गाने लगीं। नन्दभवनके बाहर और भीतर सब ओर
दहीकी कीच मच गयी । उसमें बूढ़े और मोटे शरीरवाले लोग फिसलकर गिर पड़ते थे और
दूसरे लोग खूब ताली पीट-पीटकर हँसते थे ।। ३३-३५ ॥
महाराज
! वहाँ जो पौराणिक सूत, वंशोंके प्रशंसक मागध
और निर्मल बुद्धिवाले तथा अवसरके अनुरूप बातें कहनेवाले बंदीजन पधारे थे, उन सबको नन्द- रायजीने प्रत्येकके लिये अलग-अलग एक-एक हजार गौएँ प्रदान
कीं । वस्त्र, आभूषण, रत्न, घोड़े और हाथी आदि सब कुछ दिये ।। ३६-३७ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🌹💖🥀🌹जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
परिपूर्णतम ब्रह्म के बाल कृष्ण स्वरूप में प्राकट्य उत्सव , आनंद उत्सव का अद्भुत अलौकिक दृश्य
🌹💖🌹जय कन्हैया लाल की🙏🙏