॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--नवाँ अध्याय..(पोस्ट ०९)
युधिष्ठिरादिका भीष्मजीके पास जाना और भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति
करते हुए भीष्मजीका प्राणत्याग करना
सपदि सखिवचो निशम्य मध्ये
निजपरयोर्बलयो रथं निवेश्य ।
स्थितवति परसैनिकायुरक्ष्णा
हृतवति पार्थसखे रतिर्ममास्तु ॥ ३५ ॥
व्यवहित पृतनामुखं निरीक्ष्य
स्वजनवधात् विमुखस्य दोषबुद्ध्या ।
कुमतिम अहरत् आत्मविद्यया यः
चश्चरणरतिः परमस्य तस्य मेऽस्तु ॥ ३६ ॥
(भीष्मजी कहते हैं) अपने मित्र अर्जुनकी बात सुनकर, जो तुरंत ही पाण्डव-सेना और कौरव-सेनाके बीचमें अपना रथ ले आये और वहाँ स्थित होकर जिन्होंने अपनी दृष्टिसे ही शत्रुपक्षके सैनिकोंकी आयु छीन ली, उन पार्थसखा भगवान् श्रीकृष्णमें मेरी परम प्रीति हो ॥ ३५ ॥ अर्जुन ने जब दूरसे कौरवोंकी सेनाके मुखिया हमलोगोंको देखा, तब पाप समझकर वह अपने स्वजनोंके वधसे विमुख हो गया। उस समय जिन्होंने गीताके रूपमें आत्मविद्याका उपदेश करके उसके सामयिक अज्ञानका नाश कर दिया, उन परमपुरुष भगवान् श्रीकृष्णके चरणोंमें मेरी प्रीति बनी रहे ॥ ३६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌸💖🌺🥀जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
हे गोविंद हे गोपाल हे करुणामय दीन दयाल 🙏🙏🌷💟🌷🙏🙏