॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०८)
द्वारका में श्रीकृष्णका राजोचित स्वागत
यद्यप्यसौ पार्श्वगतो रहोगतः
तथापि तस्याङ्घ्रियुगं नवं नवम् ।
पदे पदे का विरमेत तत्पदात्
चलापि यच्छ्रीर्न जहाति कर्हिचित् ॥ ३३ ॥
एवं नृपाणां क्षितिभारजन्मनां
अक्षौहिणीभिः परिवृत्ततेजसाम् ।
विधाय वैरं श्वसनो यथानलं
मिथो वधेनोपरतो निरायुधः ॥ ३४ ॥
स एष नरलोकेऽस्मिन् अवतीर्णः स्वमायया ।
रेमे स्त्रीरत्नकूटस्थो भगवान् प्राकृतो यथा ॥ ३५ ॥
यद्यपि भगवान् श्रीकृष्ण एकान्त में सर्वदा ही उनके (रानियों के) पास रहते थे, तथापि उनके चरण-कमल उन्हें पद-पद पर नये-नये जान पड़ते। भला, स्वभाव से ही चञ्चल लक्ष्मी जिन्हें एक क्षण के लिये भी कभी नहीं छोड़तीं, उनकी संनिधि से किस स्त्री को तृप्ति हो सकती है ॥ ३३ ॥
जैसे वायु बाँसों के संघर्षसे दावानल पैदा करके उन्हें जला देता है, वैसे ही पृथ्वी के भारभूत और शक्तिशाली राजाओं में परस्पर फूट डालकर बिना शस्त्र ग्रहण किये ही भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें कई अक्षौहिणी सेनासहित एक-दूसरे से मरवा डाला और उसके बाद आप भी उपराम हो गये ॥ ३४ ॥ साक्षात् परमेश्वर ही अपनी लीलासे इस मनुष्य-लोकमें अवतीर्ण हुए थे और सहस्रों रमणी-रत्नोंमें रहकर उन्होंने साधारण मनुष्य की तरह क्रीडा की ॥ ३५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
जय श्री हरि
जवाब देंहटाएं🪷💓🐚🪷जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
नारायण नारायण हरि ‼️ हरि
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय