शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - नवां अध्याय..(पोस्ट..१२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--नवाँ अध्याय..(पोस्ट १२)

युधिष्ठिरादिका भीष्मजीके पास जाना और भगवान्‌ श्रीकृष्णकी स्तुति 
करते हुए भीष्मजीका प्राणत्याग करना

सूत उवाच ।

कृष्ण एवं भगवति मनोवाक् दृष्टिवृत्तिभिः ।
आत्मनि आत्मानमावेश्य सोऽन्तःश्वास उपारमत् ॥ ४३ ॥
सम्पद्यमानमाज्ञाय भीष्मं ब्रह्मणि निष्कले ।
सर्वे बभूवुस्ते तूष्णीं वयांसीव दिनात्यये ॥ ४४ ॥
तत्र दुन्दुभयो नेदुः देवमानव वादिताः ।
शशंसुः साधवो राज्ञां खात्पेतुः पुष्पवृष्टयः ॥ ४५ ॥
तस्य निर्हरणादीनि सम्परेतस्य भार्गव ।
युधिष्ठिरः कारयित्वा मुहूर्तं दुःखितोऽभवत् ॥ ४६ ॥
तुष्टुवुर्मुनयो हृष्टाः कृष्णं तत् गुह्यनामभिः ।
ततस्ते कृष्णहृदयाः स्वाश्रमान्प्रययुः पुनः ॥ ४७ ॥
ततो युधिष्ठिरो गत्वा सहकृष्णो गजाह्वयम् ।
पितरं सान्त्वयामास गान्धारीं च तपस्विनीम् ॥ ४८ ॥
पित्रा चानुमतो राजा वासुदेवानुमोदितः ।
चकार राज्यं धर्मेण पितृपैतामहं विभुः ॥ ४९ ॥

सूतजी कहते हैं—इस प्रकार भीष्मपितामह ने मन, वाणी और दृष्टि की वृत्तियोंसे आत्मस्वरूप भगवान्‌ श्रीकृष्णमें अपने-आपको लीन कर दिया। उनके प्राण वहीं विलीन हो गये और वे शान्त हो गये ॥ ४३ ॥ उन्हें अनन्त ब्रह्ममें लीन जानकर सब लोग वैसे ही चुप हो गये, जैसे दिनके बीत जानेपर पक्षियोंका कलरव शान्त हो जाता है ॥ ४४ ॥ उस समय देवता और मनुष्य नगारे बजाने लगे। साधुस्वभावके राजा उनकी प्रशंसा करने लगे और आकाशसे पुष्पोंकी वर्षा होने लगी ॥ ४५ ॥ शौनकजी ! युधिष्ठिरने उनके मृत शरीरकी अन्त्येष्टि क्रिया करायी और कुछ समयके लिये वे शोकमग्न हो गये ॥ ४६ ॥ उस समय मुनियोंने बड़े आनन्दसे भगवान्‌ श्रीकृष्णकी उनके रहस्यमय नाम ले-लेकर स्तुति की। इसके पश्चात् अपने हृदयोंको श्रीकृष्णमय बनाकर वे अपने-अपने आश्रमोंको लौट गये ॥ ४७ ॥ तदनन्तर भगवान्‌ श्रीकृष्णके साथ युधिष्ठिर हस्तिनापुर चले आये और उन्होंने वहाँ अपने चाचा धृतराष्ट्र और तपस्विनी गान्धारीको ढाढस बँधाया ॥ ४८ ॥ फिर धृतराष्ट्रकी आज्ञा और भगवान्‌ श्रीकृष्णकी अनुमतिसे समर्थ राजा युधिष्ठिर अपने वंश परम्परागत साम्राज्यका धर्मपूर्वक शासन करने लगे ॥ ४९ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
प्रथमस्कन्धे युधिष्ठिरराज्यप्रलम्भो नाम नवमोऽध्यायः ॥ ९ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से


3 टिप्‍पणियां:

  1. 💖🌹🥀🌷हरि: ॐ तत्सत्🙏
    जय श्री हरि: 🙏💐🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय हो मेरे जगन्नाथ द्वारकानाथ
    श्री कृष्ण गोविंद🙏💟🌺🙏

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