बुधवार, 15 मई 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) पंद्रहवाँ अध्याय (पोस्ट 02)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

पंद्रहवाँ अध्याय  (पोस्ट 02)

 

यशोदाद्वारा श्रीकृष्णके मुखमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्डका दर्शन; नन्द और यशोदाके पूर्व- पुण्य का परिचय; गर्गाचार्यका नन्द भवनमें जाकर बलराम और श्रीकृष्णके नामकरण - संस्कार करना तथा वृषभानुके यहाँ जाकर उन्हें श्रीराधा-कृष्णके नित्य-सम्बन्ध एवं माहात्म्यका ज्ञान कराना

 

श्रीबहुलाश्व उवाच -
नंदगेहे हरिः साक्षाच्छिशुरूपः सनातनः ।
किं चकार बलेनापि तन्मे ब्रूहि महामुने ॥१७॥


श्रीनारद उवाच -
एकदा शिष्यसहोतो गर्गाचार्यो महामुनिः ।
शौरिणा नोदितः साक्षादाययौ नंदमंदिरम् ॥१८॥
नंदः संपूज्य विधिवत्पाद्याद्यैर्मुनिसत्तमम् ।
ततः प्रदक्षिणीकृत्य साष्टांगं प्रणनाम ह ॥१९॥


श्रीनन्द उवाच -
अद्य नः पितरो देवाः संतुष्टा अग्नयश्च नः ।
पवित्रं मंदिरं जातं युष्मच्चरणरेणुभिः ॥२०॥
मत्पुत्रनामकरणं कुरु द्विज महामुने ।
पुण्यैस्तीर्थैश्च दुष्प्राप्यं भवदागमनं प्रभो ॥२१॥


श्रीगर्ग उवाच -
ते पुत्रनामकरणं करिष्यामि न संशयः ।
पूर्ववार्तां गदिष्यामि गच्छ नंद रहःस्थलम् ॥२२॥


श्रीनारद उवाच -
उत्थाप्य गर्गो नन्देन बालाभ्यां च यशोदया ।
एकांते गोव्रजे गत्वा तयोर्नाम चकार ह ।
संपूज्य गणनाथादीन् ग्रहान्संशोध्य यत्‍नतः ।
नंदं प्राह प्रसन्नांगो गर्गाचार्यो महामुनिः ॥२४॥
रोहिणीनंदनस्यास्य नामोच्चारं शृणुष्व च ।
रमन्ते योगिनो ह्यस्मिन्सर्वत्र रमतीति वा ॥२५॥
गुणैश्च रमयन् भक्ताण्स्तेन रामं विदुः परे ।
गर्भसंकर्षणादस्य संकर्षण इति स्मृतः ॥२६॥
सर्वावशेषाद्यं शेषं बलाधिक्याद्‌बलं विदुः ।
स्वपुत्रस्यापि नामानि शृणु नंद ह्यतन्द्रितः ॥२७॥
सद्यः प्राणिपवित्राणि जगतां मंगलानि च ।
ककारः कमलाकांत ऋकारो राम इत्यपि ॥२८॥
षकारः षड्‍गुणपतिः श्वेतद्वीपनिवासकृत् ।
णकारो नारसिंहोऽयमकारो ह्यक्षरोऽग्निभुक् ॥२९॥
विसर्गौ च तथा ह्येतौ नरनारायणावृषी ।
संप्रलीनाश्च षट् पूर्णा यस्मिञ्छुद्धे महात्मनि ॥३०॥
परिपूर्णतमे साक्षात्तेन कृष्णः प्रकीर्तितः ।
शुक्लो रक्तस्तथा पीतो वर्णोऽस्यानुयुगं धृतः ॥३१॥
द्वापरान्ते कलेरादौ बालोऽयं कृष्णतां गतः ।
तस्मात्कृष्ण इति ख्यातो नाम्नायं नंदनंदनः ॥३२॥

श्रीबहुलाश्वने पूछा- महामुने ! शिशुरूपधारी उन सनातन पुरुष भगवान् श्रीहरिने बलरामजीके साथ कौन-कौन-सी लीलाएँ कीं, यह मुझे बताइये ॥ १७ ॥

श्रीनारदजीने कहा- राजन् ! एक दिन वसुदेव- जीके भेजे हुए महामुनि गर्गाचार्य अपने शिष्योंके साथ नन्दभवनमें पधारे। नन्दजीने पाद्य आदि उत्तम उपचारों- द्वारा मुनिश्रेष्ठ गर्गकी विधिवत् पूजा की और प्रदक्षिणा करके उन्हें साष्टाङ्ग प्रणाम किया ॥ १८-१९ ॥

नन्दजी बोले - आज हमारे पितर देवता और अग्नि- सभी संतुष्ट हो गये। आपके चरणोंकी धूलि पड़नेसे हमारा घर परम पवित्र हो गया। महामुने ! आप मेरे बालकका नामकरण कीजिये । विप्रवर प्रभो ! अनेक पुण्यों और तीर्थोंका सेवन करनेपर भी आपका शुभागमन सुलभ नहीं होता ।। २०-२१ ॥

 

श्रीगर्गजीने कहा –नन्दरायजी ! मैं तुम्हारे पुत्रका नामकरण करूँगा, इसमें संशय नहीं है; किंतु कुछ पूर्वकालकी बात बताऊँगा, अतः एकान्त स्थानमें चलो ॥ २२ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! तदनन्तर गर्गजी नन्द-यशोदा तथा दोनों बालक- श्रीकृष्ण एवं बलरामको साथ लेकर गोशालामें, जहाँ दूसरा कोई नहीं था, चले गये। वहाँ उन्होंने उन बालकोंका नामकरण संस्कार किया । सर्वप्रथम उन्होंने गणेश आदि देवताओंका पूजन किया, फिर यत्नपूर्वक ग्रहोंका शोधन (विचार) करके हर्षसे पुलकित हुए महामुनि गर्गाचार्य नन्दसे बोले ॥ २३-२४ ॥

गर्गजीने कहा- ये जो रोहिणीके पुत्र हैं, इनका नाम बताता हूँ — सुनो । इनमें योगीजन रमण करते हैं अथवा ये सब में रमते हैं या अपने गुणों द्वारा भक्तजनों के मन को रमाया करते हैं, इन कारणोंसे उत्कृष्ट ज्ञानीजन इन्हें 'राम' नामसे जानते हैं। योगमायाद्वारा गर्भका संकर्षण होनेसे इनका प्रादुर्भाव हुआ है, अतः ये 'संकर्षण' नामसे प्रसिद्ध होंगे। अशेष जगत् का संहार होनेपर भी ये शेष रह जाते हैं, अतः इन्हें लोग 'शेष' नामसे जानते हैं। सबसे अधिक बलवान् होनेसे ये 'बल' नामसे भी विख्यात होंगे ॥२५-२६॥

 

नन्द ! अब अपने पुत्रके नाम सावधानीके साथ सुनो- ये सभी नाम तत्काल प्राणिमात्रको पावन करनेवाले तथा चराचर समस्त जगत् के लिये परम कल्याणकारी हैं। '' का अर्थ है— कमलाकान्त; ''कारका अर्थ है— राम; '' अक्षर षड्विध ऐश्वर्यके स्वामी श्वेतद्वीपनिवासी भगवान् विष्णुका - वाचक है। '' नरसिंहका प्रतीक है और 'अकार' अक्षर अग्निभुक् (अग्निरूप से हविष्य के भोक्ता अथवा अग्निदेव के रक्षक) का वाचक है तथा दोनों विसर्गरूप बिंदु (:) नर-नारायण के बोधक हैं। ये छहों पूर्ण तत्त्व जिस महामन्त्ररूप परिपूर्णतम शब्दमें लीन हैं, वह इसी व्युत्पत्तिके कारण 'कृष्ण' कहा गया है। अतः इस बालकका एक नाम 'कृष्ण' है। सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग — इन युगोंमें इन्होंने शुक्ल, रक्त, पीत तथा कृष्ण कान्ति ग्रहण की है। द्वापरके अन्त और कलिके आदिमें यह बालक 'कृष्ण' अङ्गकान्तिको प्राप्त हुआ है, इस कारणसे भी यह नन्दनन्दन 'कृष्ण' नामसे विख्यात होगा  ॥ २७-३२ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🌺🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    🌼🌾जय श्री कृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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