शुक्रवार, 10 मई 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध चौदहवां अध्याय..(पोस्ट..०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०३)

अपशकुन देखकर महाराज युधिष्ठिर का शंका करना और अर्जुन का द्वारका से लौटना

सूर्यं हतप्रभं पश्य ग्रहमर्दं मिथो दिवि ।
ससङ्‌कुलैर्भूतगणैः ज्वलिते इव रोदसी ॥ १७ ॥
नद्यो नदाश्च क्षुभिताः सरांसि च मनांसि च ।
न ज्वलत्यग्निराज्येन कालोऽयं किं विधास्यति ॥ १८ ॥
न पिबन्ति स्तनं वत्सा न दुह्यन्ति च मातरः ।
रुदन्त्यश्रुमुखा गावो न हृष्यन्ति ऋषभा व्रजे ॥ १९ ॥
दैवतानि रुदन्तीव स्विद्यन्ति ह्युच्चलन्ति च ।
इमे जनपदा ग्रामाः पुरोद्यानाकराश्रमाः ।
भ्रष्टश्रियो निरानन्दाः किमघं दर्शयन्ति नः ॥ २० ॥
मन्य एतैर्महोत्पातैः नूनं भगवतः पदैः ।
अनन्यपुरुषश्रीभिः हीना भूर्हतसौभगा ॥ २१ ॥
इति चिन्तयतस्तस्य दृष्टारिष्टेन चेतसा ।
राज्ञः प्रत्यागमद् ब्रह्मन् यदुपुर्याः कपिध्वजः ॥ २२ ॥
तं पादयोः निपतितं अयथापूर्वमातुरम् ।
अधोवदनं अब्बिन्दून् सृजन्तं नयनाब्जयोः ॥ २३ ॥
विलोक्य उद्विग्नहृदयो विच्छायं अनुजं नृपः ।
पृच्छति स्म सुहृत् मध्ये संस्मरन् नारदेरितम् ॥ २४ ॥

(युधिष्ठिर भीम से कहते हैं) देखो ! सूर्यकी प्रभा मन्द पड़ गयी है। आकाशमें ग्रह परस्पर टकराया करते हैं। भूतों की घनी भीड़ में पृथ्वी और अन्तरिक्ष में आग-सी लगी हुई है ॥ १७ ॥ नदी, नद, तालाब, और लोगोंके मन क्षुब्ध हो रहे हैं। घीसे आग नहीं जलती। यह भयंकर काल न जाने क्या करेगा ॥ १८ ॥ बछड़े दूध नहीं पीते, गौएँ दुहने नहीं देतीं, गोशालामें गौएँ आँसू बहा-बहाकर रो रही हैं। बैल भी उदास हो रहे हैं ॥ १९ ॥ देवताओंकी मूर्तियाँ रो-सी रही हैं, उनमेंसे पसीना चूने लगता है और वे हिलती-डोलती भी हैं। भाई ! ये देश, गाँव, शहर, बगीचे, खानें और आश्रम श्रीहीन और आनन्दरहित हो गये हैं। पता नहीं ये हमारे किस दु:खकी सूचना दे रहे हैं ॥ २० ॥ इन बड़े-बड़े उत्पातोंको देखकर मैं तो ऐसा समझता हूँ कि निश्चय ही यह भाग्यहीना भूमि भगवान्‌के उन चरणकमलोंसे, जिनका सौन्दर्य तथा जिनके ध्वजा, वज्र, अंकुशादि- विलक्षण चिह्न और किसीमें भी कहीं भी नहीं हैं, रहित हो गयी है ॥ २१ ॥ शौनकजी ! राजा युधिष्ठिर इन भयंकर उत्पातोंको देखकर मन-ही-मन चिन्तित हो रहे थे कि द्वारकासे लौटकर अर्जुन आये ॥ २२ ॥ युधिष्ठिरने देखा, अर्जुन इतने आतुर हो रहे हैं जितने पहले कभी नहीं देखे गये थे। मुँह लटका हुआ है, कमल-सरीखे नेत्रोंसे आँसू बह रहे हैं और शरीरमें बिलकुल कान्ति नहीं है। उनको इस रूपमें अपने चरणोंमें पड़ा देखकर युधिष्ठिर घबरा गये। देवर्षि नारदकी बातें याद करके उन्होंने सुहृदोंके सामने ही अर्जुनसे पूछा ॥ २३-२४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌺💖🌹🥀 जय श्री हरि:🙏🙏
    श्री कृष्ण गोविंद के लीला संवरण
    के बाद का अति मार्मिक ह्रदय स्पर्शी दृश्य के चित्रण को पढ़ कर
    आज भी नेत्र सजल हो जाते हैं 🙏🥀🙏श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव 🙏🙏
    हे गोविंद हे गोपाल हे करुणामय दीन दयाल 🙏💟🙏

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