मंगलवार, 28 मई 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध सोलहवां अध्याय..(पोस्ट..०३)

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध-सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०३)

परीक्षित्‌ की दिग्विजय 
तथा धर्म और पृथ्वी का संवाद

सारथ्यपारषदसेवनसख्यदौत्य- 
वीरासनानुगमनस्तवनप्रणामान् ।
स्निग्धेषु पाण्डुषु जगत्प्रणतिं च विष्णो- 
र्भक्तिं करोति नृपतिश्चरणारविन्दे ॥१६॥
तस्यैवं वर्तमानस्य पूर्वेषां वृत्तिमन्वहम् ।
नातिदूरे किलाश्चर्य यदासीत् तन्निबोध मे ॥१७॥
धर्मः पदैकेन चरन् विच्छायामुपलभ्य गाम् ।
पृच्छति स्माश्रुवदनां विवत्सामिव मातरम् ॥१८॥

धर्म उवाच ।
कच्चिद्भद्रेऽनामयमात्मनस्ते 
विच्छायासि म्लायतेषन्मुखेन ।
आलक्षये भवतीमन्तराधिं 
दूरे बन्धुं शोचसि कञ्चनाम्ब ॥१९॥
पादैर्न्यूनं शोचासि मैकपाद- 
मात्मानं वा वृषलैर्भोक्ष्यमाणम् ।
आहो सुरादीन् हृतयज्ञभागान्
प्रजा उतस्विन्मघवत्यवर्षति ॥२०॥

वे (परीक्षित्‌ जी) सुनते कि भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने प्रेमपरवश होकर पाण्डवों के सारथि का काम किया, उनके सभासद् बने—यहाँतक कि उनके मनके अनुसार काम करके उनकी सेवा भी की। उनके सखा तो थे ही, दूत भी बने। वे रातको शस्त्र ग्रहण करके वीरासनसे बैठ जाते और शिविरका पहरा देते, उनके पीछे-पीछे चलते, स्तुति करते तथा प्रणाम करते; इतना ही नहीं, अपने प्रेमी पाण्डवोंके चरणोंमें उन्होंने सारे जगत् को झुका दिया। तब परीक्षित्‌की भक्ति भगवान्‌ श्रीकृष्णके चरण-कमलोंमें और भी बढ़ जाती ॥ १६ ॥ इस प्रकार वे दिन-दिन पाण्डवोंके आचरणका अनुसरण करते हुए दिग्विजय कर रहे थे। उन्हीं दिनों उनके शिविर से थोड़ी ही दूरपर एक आश्चर्यजनक घटना घटी। वह मैं आपको सुनाता हूँ ॥ १७ ॥ धर्म बैल का रूप धारण करके एक पैर से घूम रहा था। एक स्थानपर उसे गाय के रूपमें पृथ्वी मिली। पुत्रकी मृत्युसे दु:खिनी माताके समान उसके नेत्रोंसे आँसुओंके झरने झर रहे थे। उसका शरीर श्रीहीन हो गया था। धर्म पृथ्वीसे पूछने लगा ॥ १८ ॥

धर्म ने कहा—कल्याणि ! कुशलसे तो हो न ? तुम्हारा मुख कुछ-कुछ मलिन हो रहा है। तुम श्रीहीन हो रही हो, मालूम होता है तुम्हारे हृदयमें कुछ-न-कुछ दु:ख अवश्य है। क्या तुम्हारा कोई सम्बन्धी दूर देशमें चला गया है, जिसके लिये तुम इतनी चिन्ता कर रही हो ? ॥ १९ ॥ कहीं तुम मेरी तो चिन्ता नहीं कर रही हो कि अब इसके तीन पैर टूट गये, एक ही पैर रह गया है ? सम्भव है, तुम अपने लिये शोक कर रही हो कि अब शूद्र तुम्हारे ऊपर शासन करेंगे। तुम्हें इन देवताओंके लिये भी खेद हो सकता है, जिन्हें अब यज्ञोंमें आहुति नहीं दी जाती, अथवा उस प्रजाके लिये भी, जो वर्षा न होनेके कारण अकाल एवं दुर्भिक्षसे पीडि़त हो रही है ॥ २० ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 💟🌹🥀🚩जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय हो मेरे भक्त वत्सल
    द्वारकानाथ गोविंद की
    हे करुणामय दीन दयाल
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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