रविवार, 23 जून 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( श्रीवृन्दावनखण्ड ) छठा अध्याय ( पोस्ट 01 )


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

( श्रीवृन्दावनखण्ड )

छठा अध्याय ( पोस्ट 01 )

 

अघासुर का उद्धार और उसके पूर्वजन्म का परिचय

 

एकदा बालकैः साकं गोवत्सांश्चारयन् हरिः ।
कालिन्दीनिकटे रम्ये बालक्रीडां चकार ह ॥ १ ॥
अघासुरो नाम महान् दैत्यस्तत्र स्थितोऽभवत् ।
क्रोशदीर्घं वपुः कृत्वा प्रसार्य मुखमंडलम् ॥ २ ॥
दूराद्यं पर्वताकारं वीक्ष्य वृन्दावने वने ।
गोपा जग्मुर्मुखे तस्य वत्सैः कृत्वांजलिध्वनिम् ॥ ३ ॥
तद्‌रक्षार्थं च सबलः तन्मुखे प्राविशद्धरिः ।
निगीर्णेषु सवत्सेषु बालेषु त्वहिरूपिणा ॥ ४ ॥
हाशब्दोऽभूत्सुराणां तु दैत्यानां हर्ष एव हि ।
कृष्णो वपुः स्वं वैराजं ततानाघोदरे ततः ॥ ५ ॥
तस्य संरोधगाः प्राणाः शिरोप् भित्वा विनिर्गताः ।
तन्मुखान्निर्गतः कृष्णो बालैर्वत्सैश्च मैथिल ॥ ६ ॥
सवत्सकान् शिशून् दृष्ट्वा जीवयामास माधवः ।
तज्ज्योतिः श्रीघनश्यामे लीनं जातं तडिद्यथा ॥ ७ ॥
तदैव ववृषुर्देवा पुष्पवर्षाणि पार्थिव ।
एवं श्रुत्वा मुनेर्वाक्यं मैथिलो वाक्यमब्रवीत् ॥ ८ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! एक दिन असुर ने जब बछड़ों और ग्वाल-बालों को निगल ग्वाल-बालों के साथ बछड़े चराते हुए श्रीहरि कालिन्दीके निकट किसी रमणीय स्थानपर बालोचित खेल खेलने लगे। उसी समय अघासुर नामक महान् दैत्य एक कोस लंबा शरीर धारण करके भीषण मुखको फैलाये वहाँ मार्गमें स्थित हो गया। दूरसे ऐसा जान पड़ता था, मानो कोई पर्वत खड़ा हो। वृन्दावन में उसे देखकर सब ग्वाल-बाल ताली बजाते हुए बछड़ोंके साथ उसके मुँह में घुस गये ।। १-३ ॥

 

उन सबकी रक्षा के लिये बलराम सहित श्रीकृष्ण भी अघासुरके मुखमें प्रविष्ट हो गये। उस सर्परूपधारी ने जब बछड़ों और ग्वाल-बालों को निगल लिया, तब देवताओं में हाहाकार मच गया; किंतु दैत्योंके मनमें हर्ष ही हुआ। उस समय श्रीकृष्णने अघासुरके उदरमें अपने विराट् स्वरूपको बढ़ाना आरम्भ किया ।। ४-५ ॥

 

इससे अवरुद्ध हुए अघासुर- के प्राण उसका मस्तक फोड़कर बाहर निकल गये । मिथिलेश्वर! फिर बालकों और बछड़ों के साथ श्रीकृष्ण अघासुर के मुखसे बाहर निकले । जो बछड़े और बालक मर गये थे, उन्हें माधव ने अपनी कृपा- दृष्टिसे देखकर जीवित कर दिया। अघासुर की जीवन- ज्योति श्यामघन में विद्युत् की भाँति श्रीघनश्याम में विलीन हो गयी । राजन् ! उसी समय देवताओंने पुष्पवर्षा की। देवर्षि नारदके मुखसे यह वृत्तान्त सुनकर मिथिलेश्वर बहुलाश्व ने कहा ॥६-८॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 



2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌼💐🌾जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    गोविंद गोविंद गोपाल नंद लाल

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  2. ॐ नमः भगवते वासुदेवाय

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