शनिवार, 1 जून 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) उन्नीसवाँ अध्याय (पोस्ट 02)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

उन्नीसवाँ अध्याय (पोस्ट 02)

 

दामोदर कृष्णका उलूखल-बन्धन तथा उनके द्वारा यमलार्जुन-वृक्षोंका उद्धार

 

श्रीनारद उवाच -
इत्युक्तायां यशोदायां व्यग्रायां गृहकर्मसु ।
कर्षन्नुलूखलं कृष्णो बालैः श्रीयमुनां ययौ ॥१४॥
तत्तटे च महावृक्षौ पुराणौ यमलार्जुनौ ।
तयोर्मध्ये गतः कृष्णो हसन् दामोदरः प्रभुः ॥१५॥
चकर्ष सहसा कृष्णस्तिर्यग्गतमुलूखलम् ।
कर्षणेन समूलौ द्वौ पेततुर्भूमिमंडले ॥१६॥
पातनेनापि शब्दोऽभूत्प्रचंडो वज्रपातवत् ।
विनिर्गतौ च वृक्षाभ्यां देवौ द्वावेधसोऽग्निवत् ॥१७॥
दामोदरं परिक्रम्य पादौ स्पृष्टौ स्वमौलिना ।
कृतांजली हरिं नत्वा तौ तु तत्संमुखे स्थितौ ॥१८॥


देवावूचतुः -
आवां मुक्तौ ब्रह्मदण्डात्सद्यस्तेऽच्युत दर्शनात् ।
माभूत्ते निजभक्तानां हेलनं ह्यावयोर्हरे ॥१९॥
करुणानिधये तुभ्यं जगन्मंगलशीलिने ।
दामोदराय कृष्णाय गोविंदाय नमो नमः ॥२०॥


श्रीनारद उवाच -
इति नत्वा हरिं तौ द्वावुदीचीं च दिशं गतौ ।
तदैव ह्यागताः सर्वे नंदाद्या भयकातराः ॥२१॥
कथं वृक्षौ प्रपतितौ विना वातं व्रजार्भकाः ।
वदताशु तदा बाला ऊचुः सर्वे व्रजौकसः ॥२२॥

श्रीनारदजी कहते हैं-नरेश्वर ! उन गोपियोंके यों कहनेपर यशोदाजी कुछ नहीं बोलीं । वे घरके काम- धंधोंमें लग गयीं। इसी बीच मौका पाकर श्रीकृष्ण ग्वाल-बालोंके साथ वह ओखली खींचते हुए श्रीयमुनाजीके किनारे चले गये। यमुनाजीके तटपर दो पुराने विशाल वृक्ष थे, जो एक-दूसरेसे जुड़े हुए खड़े थे। वे दोनों ही अर्जुन-वृक्ष थे। दामोदर भगवान् कृष्ण हँसते हुए उन दोनों वृक्षोंके बीचमेंसे निकल गये । ओखली वहाँ टेढ़ी हो गयी थी, तथापि श्रीकृष्णने सहसा उसे खींचा। खींचनेसे दबाव पाकर वे दोनों वृक्ष जड़सहित उखड़कर पृथ्वीपर गिर पड़े ॥ १४ - १६॥

 

वृक्षोंके गिरनेसे जो धमाकेकी आवाज हुई, वह वज्रपातके समान भयंकर थी। उन वृक्षोंसे दो देवता निकले - ठीक उसी तरह जैसे काष्ठसे अग्नि प्रकट हुई हो। उन दोनों देवताओंने दामोदरकी परिक्रमा करके अपने मुकुटसे उनके पैर छुए और दोनों हाथ जोड़े। वे उन श्रीहरिके समक्ष नतमस्तक खड़े हो इस प्रकार बोले । १७ - १८ ॥

 

दोनों देवता कहने लगे-अच्युत ! आपके दर्शन से हम दोनों को इसी क्षण ब्रह्मदण्ड से मुक्ति मिली है। हरे ! अब हम दोनों से आपके निज भक्तों- की अवहेलना न हो। आप करुणा की निधि हैं । जगत् का मङ्गल करना आपका स्वभाव है । आप 'दामोदर', 'कृष्ण' और 'गोविन्द' को हमारा बारंबार नमस्कार है  ॥। १९-२० ॥

 

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! इस प्रकार श्रीहरिको नमस्कार करके वे दोनों देवकुमार उत्तर दिशाकी ओर चल दिये। उसी समय भयसे कातर हुए नन्द आदि समस्त गोप वहाँ आ पहुँचे। वे पूछने लगे — 'व्रजबालको ! बिना आँधी-पानीके ये दोनों वृक्ष कैसे गिर पड़े ? शीघ्र बताओ ।' तब उन समस्त व्रजवासी बालकोंने कहा ।। २१-२२ ।।

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🌺💖🌹🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    नारायण नारायण नारायण नारायण
    कृष्णाय दामोदराय गोविंदाय नमो नमः 🙏💟🙏🥀

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