॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध- सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०२)
महाराज परीक्षित्द्वारा कलियुगका दमन
त्वं वा मृणालधवलः पादैर्न्यूनः पदा चरन् ।
वृषरूपेण किं कश्चिद् देवो नः परिखेदयन् ॥७॥
न जातु पौरवेन्द्राणां दोर्दण्डपरिरम्भिते ।
भूतलेऽनुपतन्त्यस्मिन् विना ते प्राणिनां शुचः ॥८॥
मा सौरभेयानुशुचो व्येतु ते वृषलाद् भयम् ।
मा रोदीरम्ब भद्रं ते खलानां मयि शास्तरि ॥९॥
यस्य राष्ट्रे प्रजाः सर्वास्त्रस्यन्ते साध्व्यसाधुभिः ।
तस्य मत्तस्य नश्यन्ति कीर्तिरायुर्भगो गतिः ॥१०॥
एष राज्ञां परो धर्मो ह्यार्तानामार्तिनिग्रहः ।
अत एनं वधिष्यामि भूतद्रुहमसत्तमम् ॥११॥
कोऽवृश्चत् तव पादांस्त्रीन् सौरभेय चतुष्पद ।
मा भूवस्त्वांदृशा राष्ट्रे राज्ञां कृष्णानुवर्तिनाम् ॥१२॥
आख्याहि वृष भद्रं वः साधूनामकॄतागसाम् ।
आत्मवैरूप्यकर्तारं पार्थानां कीर्तिदूषणम् ॥१३॥
उन्होंने (राजा परीक्षित् ने) धर्मसे पूछा—कमलनालके समान आपका श्वेतवर्ण है। तीन पैर न होने पर भी आप एक ही पैर से चलते-फिरते हैं। यह देखकर मुझे बड़ा कष्ट हो रहा है। बतलाइये, आप क्या बैलके रूपमें कोई देवता हैं ? ॥ ७ ॥ अभी यह भूमण्डल कुरुवंशी नरपतियों के बाहुबलसे सुरक्षित है। इसमें आपके सिवा और किसी भी प्राणी की आँखों से शोकके आँसू बहते मैंने नहीं देखे ॥ ८ ॥ धेनुपुत्र ! अब आप शोक न करें। इस शूद्रसे निर्भय हो जायँ। गोमाता ! मैं दुष्टोंको दण्ड देनेवाला हूँ। अब आप रोयें नहीं। आपका कल्याण हो ॥ ९ ॥ देवि ! जिस राजाके राज्यमें दुष्टोंके उपद्रवसे सारी प्रजा त्रस्त रहती है उस मतवाले राजा की कीर्ति, आयु, ऐश्वर्य और परलोक नष्ट हो जाते हैं ॥ १० ॥ राजाओंका परम धर्म यही है कि वे दुखियोंका दु:ख दूर करें। यह महादुष्ट और प्राणियोंको पीडि़त करनेवाला है। अत: मैं अभी इसे मार डालूँगा ॥ ११ ॥ सुरभिनन्दन ! आप तो चार पैरवाले जीव हैं। आपके तीन पैर किसने काट डाले ? श्रीकृष्णके अनुयायी राजाओंके राज्यमें कभी कोई भी आपकी तरह दुखी न हो ॥ १२ ॥ वृषभ ! आपका कल्याण हो। बताइये, आप-जैसे निरपराध साधुओंका अङ्ग-भङ्ग करके किस दुष्टने पाण्डवोंकी कीर्तिमें कलङ्क लगाया है ? ॥ १३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌸🌹🥀🌺जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण