शनिवार, 22 जून 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध उन्नीसवां अध्याय..(पोस्ट ०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध- उन्नीसवाँ अध्याय..(पोस्ट ०४)

परीक्षित्‌का अनशनव्रत और शुकदेवजीका आगमन

इति स्म राजाध्यवसाययुक्तः
    प्राचीनमूलेषु कुशेषु धीरः ।
उदङ्‌मुखो दक्षिणकूल आस्ते
    समुद्रपत्‍न्याः स्वसुतन्यस्तभारः ॥ १७ ॥
एवं च तस्मिन् नरदेवदेवे
    प्रायोपविष्टे दिवि देवसङ्घाः ।
प्रशस्य भूमौ व्यकिरन् प्रसूनैः
    मुदा मुहुर्दुन्दुभयश्च नेदुः ॥ १८ ॥
महर्षयो वै समुपागता ये
    प्रशस्य साध्वित्यनुमोदमानाः ।
ऊचुः प्रजानुग्रहशीलसारा
    यदुत्तमश्लोकगुणाभिरूपम् ॥ १९ ॥
न वा इदं राजर्षिवर्य चित्रं
    भवत्सु कृष्णं समनुव्रतेषु ।
येऽध्यासनं राजकिरीटजुष्टं
    सद्यो जहुर्भगवत्पार्श्वकामाः ॥ २० ॥
सर्वे वयं तावदिहास्महेऽद्य
    कलेवरं यावदसौ विहाय ।
लोकं परं विरजस्कं विशोकं
    यास्यत्ययं भागवतप्रधानः ॥ २१ ॥

महाराज परीक्षित्‌ परम धीर थे। वे ऐसा दृढ़ निश्चय करके गङ्गाजीके दक्षिण तटपर पूर्वाग्र कुशोंके आसनपर उत्तरमुख होकर बैठ गये। राज-काजका भार तो उन्होंने पहले ही अपने पुत्र जनमेजयको सौंप दिया था ॥ १७ ॥ पृथ्वीके एकच्छत्र सम्राट् परीक्षित्‌ जब इस प्रकार आमरण अनशनका निश्चय करके बैठ गये, तब आकाशमें स्थित देवतालोग बड़े आनन्दसे उनकी प्रशंसा करते हुए वहाँ पृथ्वीपर पुष्पोंकी वर्षा करने लगे तथा उनके नगारे बार-बार बजने लगे ॥ १८ ॥ सभी उपस्थित महर्षियोंने परीक्षित्‌ के निश्चयकी प्रशंसा की और ‘साधु-साधु’ कहकर उनका अनुमोदन किया। ऋषिलोग तो स्वभावसे ही लोगोंपर अनुग्रहकी वर्षा करते रहते हैं; यही नहीं, उनकी सारी शक्ति लोकपर कृपा करनेके लिये ही होती है। उन लोगोंने भगवान्‌ श्रीकृष्णके गुणोंसे प्रभावित परीक्षित्‌के प्रति उनके अनुरूप वचन कहे ॥ १९ ॥ ‘राजर्षिशिरोमणे ! भगवान्‌ श्रीकृष्णके सेवक और अनुयायी आप पाण्डुवंशियोंके लिये यह कोई आश्चर्यकी बात नहीं है; क्योंकि आपलोगोंने भगवान्‌ की सन्निधि प्राप्त करनेकी आकाङ्क्षासे उस राजसिंहासनका एक क्षणमें ही परित्याग कर दिया, जिसकी सेवा बड़े-बड़े राजा अपने मुकुटोंसे करते थे ॥ २० ॥ हम सब तबतक यहीं रहेंगे, जबतक ये भगवान्‌ के परम भक्त परीक्षित्‌ अपने नश्वर शरीरको छोडक़र मायादोष एवं शोकसे रहित भगवद्धाम में नहीं चले जाते’ ॥ २१ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


3 टिप्‍पणियां:

  1. 🌼💖🌾🌟जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हे गोविंद हे गोपाल !!
    हे करुणामय दीन दयाल !!
    हे नाथ !! हे नारायण !!
    हे कृष्ण !! हे वासुदेव !!

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