॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध- उन्नीसवाँ अध्याय..(पोस्ट ०९)
परीक्षित् का अनशनव्रत और शुकदेवजीका आगमन
अन्यथा तेऽव्यक्तगतेः दर्शनं नः कथं नृणाम् ।
नितरां म्रियमाणानां संसिद्धस्य वनीयसः ॥ ३६ ॥
अतः पृच्छामि संसिद्धिं योगिनां परमं गुरुम् ।
पुरुषस्येह यत्कार्यं म्रियमाणस्य सर्वथा ॥ ३७ ॥
यच्छ्रोतव्यमथो जप्यं यत्कर्तव्यं नृभिः प्रभो ।
स्मर्तव्यं भजनीयं वा ब्रूहि यद्वा विपर्ययम् ॥ ३८ ॥
नूनं भगवतो ब्रह्मन् गृहेषु गृहमेधिनाम् ।
न लक्ष्यते ह्यवस्थानं अपि गोदोहनं क्वचित् ॥ ३९ ॥
सूत उवाच ।
एवमाभाषितः पृष्टः स राज्ञा श्लक्ष्णया गिरा ।
प्रत्यभाषत धर्मज्ञो भगवान् बादरायणिः ॥ ४० ॥
भगवान् श्रीकृष्णकी कृपा न होती तो आप-सरीखे एकान्त वनवासी अव्यक्तगति परम सिद्ध पुरुष स्वयं पधारकर इस मृत्युके समय हम-जैसे प्राकृत मनुष्यों को क्यों दर्शन देते ॥ ३६ ॥ आप योगियोंके परम गुरु हैं, इसलिये मैं आपसे परम सिद्धिके स्वरूप और साधनके सम्बन्ध में प्रश्न कर रहा हूँ। जो पुरुष सर्वथा मरणासन्न है, उसको क्या करना चाहिये ? ॥ ३७ ॥ भगवन् ! साथ ही यह भी बतलाइये कि मनुष्यमात्र को क्या करना चाहिये। वे किसका श्रवण, किसका जप, किसका स्मरण और किसका भजन करें तथा किसका त्याग करें ? ॥ ३८ ॥ भगवत्स्वरूप मुनिवर ! आपका दर्शन अत्यन्त दुर्लभ है; क्योंकि जितनी देर एक गाय दुही जाती है, गृहस्थों के घरपर उतनी देर भी तो आप नहीं ठहरते ॥ ३९ ॥
सूतजी कहते हैं—जब राजा ने बड़ी ही मधुर वाणी में इस प्रकार सम्भाषण एवं प्रश्न किये, तब समस्त धर्मों के मर्मज्ञ व्यासनन्दन भगवान् श्रीशुकदेवजी उनका उत्तर देने लगे ॥ ४० ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
प्रथमस्कन्धे शुकागमनं नाम एकोनविंशोऽध्यायः ॥ १९ ॥
इति प्रथम स्कन्ध समाप्त
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌺🍂💖🥀जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण 🙏🥀🙏हरि: शरणम् ही केवलम🙏🥀🙏