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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(
श्रीवृन्दावनखण्ड )
ग्यारहवाँ
अध्याय ( पोस्ट 02 )
धेनुकासुर का उद्धार
योजनं
नोदयामास गजं प्रति गजो यथा ।।
गृहीत्वा तं बलः सद्यो भ्रामयित्वाथ धेनुकम् ।। १० ।।
भूपृष्ठे पोथयामास मूर्च्छितो भग्नमस्तकः ।।
क्षणेन पुनरुत्थाय क्रोधसंयुक्तविग्रहः ।।११।।
मूर्ध्नि कृत्वा चतुःशृंगं धृत्वा रूपं भयंकरम् ।।
गोपान्विद्रावयामास शृंगैस्तीक्ष्णैर्भयंकरैः ।।१२।।
अग्रे पलायितान्गोपान्दुद्रावाशु मदोत्कटः ।।
श्रीदामा तं च दंडेन सुबलो मुष्टिना तथा ।।१३।।
स्तोकः पाशेन तं दैत्यं संतताड महाबलम् ।।
क्षेपणेनार्जुनोंशुश्च दैत्यं लत्तिकया खरम् ।।१४।।
विशालर्षभ एत्याशु पादेन स्वबलेन च ।।
तेजस्वी ह्यर्द्धचन्द्रेण देवप्रस्थ श्च पेटकैः ।।१५।।
वरूथपः कंदुकेन संतताड महाखरम् ।।
अथ कृष्णोपि तं नीत्वा हस्ताभ्यां धेनुकासुरम् ।।१६।।
भ्रामयित्वाशु चिक्षेप गिरिगोवर्द्ध- नोपरि ।।
श्रीकृष्णस्य प्रहारेण मूर्च्छितो घटिकाद्वयम् ।। १७ ।।
पुनरुत्थाय स्वतनुं विधुन्वन्दारयन्मुखम् ।।
शृङ्गाभ्यां श्रीहरिं नीत्वा धावन्दैत्यो न भोगतः ।।१८।।
चचार तेन खे युद्धमूर्ध्वं वै लक्षयोजनम् ।।
गृहीत्वा धेनुकं दैत्यं श्रीकृष्णो भगवान्स्वयम् ।। १९ ।।
चिक्षेपाधो भूमिमध्ये चूर्णितास्थिः स मूर्च्छितः ।।
पुनरुत्थाय शृङ्गाभ्यां नादं कृत्वातिभैरवम् ।।२०।।
तब
बलराम,जी ने तत्काल धेनुक को पकड़कर घुमाना आरम्भ किया और घुमाकर उसे भूतल पर दे मारा। तब उसे मूर्च्छा आ गयी और उसका मस्तक फट गया। तो भी
वह क्षणभरमें उठकर खड़ा हो गया। उसके शरीरसे भयानक क्रोध टपक रहा था ॥ १०-११ ॥
इसके
बाद उस दैत्य ने अपने मस्तक में चार सींग
प्रकट करके, भयानक रूप धारण कर उन तीखे और भयंकर सींगों से गोपों को खदेड़ना आरम्भ किया ॥ १२ ॥
गोपोंको
आगे-आगे भागते देख वह मदमत्त असुर तुरंत ही उनके पीछे दौड़ा ॥ उस समय श्रीदामा ने उसपर डंडेसे प्रहार
किया, सुबलने उसको मुक्केसे मारा, स्तोककृष्ण ने उस महाबली दैत्यपर
पाश से प्रहार किया, अर्जुन ने क्षेपण से और अंशु ने उस गर्दभाकार दैत्यपर लात से आघात किया। इसके बाद विशालर्षभ ने आकर शीघ्रतापूर्वक
अपने पैर से और बल से भी उस दैत्य को दबाया। तेजस्वी ने अर्द्धचन्द्र (गर्दनियाँ)
देकर उसे पीछे हटाया और देवप्रस्थ ने उस असुर के
कई तमाचे जड़ दिये ॥ १३-१५ ॥
वरूथप ने उस विशालकाय गधे को गेंद से
मारा। तदनन्तर श्रीकृष्णने भी धेनुकासुरको दोनों हाथोंसे उठाकर घुमाया और तुरंत ही
गोवर्धन पर्वतके ऊपर फेंक दिया। श्रीकृष्णके उस प्रहारसे धेनुक दो घड़ीतक मूर्च्छित
पड़ा रहा। फिर उठकर अपने शरीरको कँपाता हुआ मुँह फाड़कर आगे बढ़ा और दोनों सींगों से श्रीहरिको उठाकर वह दैत्य दौड़कर आकाशमें चला गया ॥ १६-१८ ॥
आकाश में एक लाख योजन ऊँचे जाकर उनके साथ युद्ध करने लगा । भगवान् श्रीकृष्ण ने धेनुकासुर- को पकड़कर नीचे भूमि को ओर फेंका।
इससे उसकी हड्डियाँ चूर-चूर हो गयीं और वह मूर्च्छित हो गया। तथापि पुनः उठकर अत्यन्त
भयंकर सिंहनाद करते हुए उसने दोनों सींगों से गोवर्धन पर्वत को उखाड़ लिया और श्रीकृष्ण के ऊपर चलाया ॥ १९-२० ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🪷💐💐🪷जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव