बुधवार, 24 जुलाई 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( श्रीवृन्दावनखण्ड ) पंद्रहवाँ अध्याय ( पोस्ट 03 )


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

( श्रीवृन्दावनखण्ड )

पंद्रहवाँ अध्याय ( पोस्ट 03 )

 

श्रीराधाका गवाक्षमार्गसे श्रीकृष्णके रूपका दर्शन करके प्रेम-विह्वल होना; ललिताका श्रीकृष्णसे राधाकी दशाका वर्णन करना और उनकी आज्ञाके अनुसार लौटकर श्रीराधाको श्रीकृष्ण-प्रीत्यर्थ सत्कर्म करनेकी प्रेरणा देना

 

श्रीनारद उवाच -
इति श्रुत्वा वचस्तस्या ललिता भयविह्वला ।
श्रीकृष्णपार्श्वं प्रययौ कृष्णातीरे मनोहरे ॥ २३ ॥
माधवीजालसंयुक्ते मधुरध्वनिसंकुले ।
कदम्बमूले रहसि प्राह चैकाकिनं हरिम् ॥ २४ ॥


ललितोवाच -
यस्मिन् दिने च ते रूपं राधया दृष्टमद्‌भुतम् ।
तद्दीनात्स्तंभतां प्राप्ता पुत्रिकेव न वक्ति किम् ॥ २५ ॥
अलंकारस्त्वर्चिरिव वस्त्रं भर्जरजो यथा ।
सुगंधि कटुवद्यस्या मन्दिरं निर्जनं वनम् ॥ २६ ॥
पुष्पं बाणं चंद्रबिंबं विषकंदमवेहि भोः ।
तस्यै संदर्शनं देहि राधायै दुःखनाशनम् ॥ २७ ॥
ते साक्षिणं किं विदितं न भूतले
सृजस्यलं पासि हरस्यथो जगत् ।
यदा समानोऽसि जनेषु सर्वतः
तथापि भक्तान् भजसे परेश्वर ॥ २८ ॥


श्रीनारद उवाच -
इति श्रुत्वा हरिः साक्षाल्ललितं ललितावचः ।
उवाच भगवान् देवो मेघगंभीरया गिरा ॥ २९ ॥

नारदजी कहते हैं - मिथिलेश्वर ! श्रीराधाकी यह बात सुनकर ललिता भयसे विह्वल हो, यमुनाके मनोहर तटपर श्रीकृष्णके पास गयी। वे माधवीलताके जालसे आच्छन्न और भ्रमरोंकी गुंजारोंसे व्याप्त एकान्त प्रदेशमें कदम्बकी जड़के पास अकेले बैठे थे। वहाँ ललिताने श्रीहरि से कहा ॥ २३-२४ ॥

ललिता बोली - श्यामसुन्दर ! जिस दिनसे श्रीराधाने तुम्हारे अद्भुत मोहनरूपको देखा है, उसी दिनसे वह स्तम्भनरूप सात्त्विकभावके अधीन हो गयी है। काठ की पुतली की भाँति किसीसे कुछ बोलती नहीं। अलंकार उसे अग्नि की ज्वालाकी भाँति दाहक प्रतीत होते हैं। सुन्दर वस्त्र भाड़की तपी हुई बालूके समान जान पड़ते हैं। उसके लिये हर प्रकारकी सुगन्ध कड़वी तथा परिचारिकाओंसे भरा हुआ भवन भी निर्जन वन हो गया है। हे प्यारे ! तुम यह जान लो कि तुम्हारे विरह में मेरी सखी को फूल बाण-सा तथा चन्द्र-बिम्ब विषकंद-सा प्रतीत होता है। अतः श्रीराधा को तुम शीघ्र दर्शन दो। तुम्हारा दर्शन ही उसके दुःखों को दूर कर सकता है ॥२५ - २

तुम सबके साक्षी हो | भूतलपर कौन-सी ऐसी बात है, जो तुम्हें विदित न हो। तुम्हीं इस जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करते हो। यद्यपि परमेश्वर होनेके कारण तुम सब लोगोंके प्रति समानभाव रखते हो, तथापि अपने भक्तोंका भजन करते हो (उनके प्रति अधिक प्रेम- भाव रखते हो ) ॥२८॥

नारदजी कहते हैं— राजन् ! ललिताकी यह ललित, बात सुनकर व्रजके साक्षात् देवता भगवान् श्रीकृष्ण मेघगर्जनके समान गम्भीर वाणीमें बोले ॥ २९ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🌺💟🌹💐जय श्रीकृष्ण🙏🏼🙏🏼
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हरि हरये नमः कृष्ण माधवाय नमः गोपाल गोविंद राम श्री मधुसूदन
    जय श्री राधे गोविंद

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