॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट०२)
ध्यान-विधि और भगवान् के विराट्स्वरूप का वर्णन
प्रायेण मुनयो राजन् निवृत्ता विधिषेधतः ।
नैर्गुण्यस्था रमंते स्म गुणानुकथने हरेः ॥ ७ ॥
इदं भागवतं नाम पुराणं ब्रह्मसम्मितम् ।
अधीतवान् द्वापरादौ पितुर्द्वैपायनादहम् ॥ ८ ॥
परिनिष्ठितोऽपि नैर्गुण्य उत्तमश्लोकलीलया ।
गृहीतचेता राजर्षे आख्यानं यत् अधीतवान् ॥ ९ ॥
तदहं तेऽभिधास्यामि महापौरुषिको भवान् ।
यस्य श्रद्दधतामाशु स्यान् मुकुंदे मतिः सती ॥ १० ॥
एतन्निर्विद्यमानानां इच्छतां अकुतोभयम् ।
योगिनां नृप निर्णीतं हरेर्नामानुकीर्तनम् ॥ ११ ॥
(श्रीशुकदेवजी कहते हैं) परीक्षित् ! जो निर्गुण स्वरूपमें स्थित हैं एवं विधि-निषेधकी मर्यादाको लाँघ चुके हैं, वे बड़े-बड़े ऋषि- मुनि भी प्राय: भगवान् के अनन्त कल्याणमय गुणगणोंके वर्णनमें रमे रहते हैं ॥ ७ ॥ द्वापरके अन्तमें इस भगवद्रूप अथवा वेदतुल्य श्रीमद्भागवत नाम के महापुराण का अपने पिता श्रीकृष्णद्वैपायन से मैंने अध्ययन किया था ॥ ८ ॥ राजर्षे ! मेरी निर्गुणस्वरूप परमात्मा में पूर्ण निष्ठा है। फिर भी भगवान् श्रीकृष्ण की मधुर लीलाओंने बलात् मेरे हृदयको अपनी ओर आकर्षित कर लिया। यही कारण है कि मैंने इस पुराणका अध्ययन किया ॥ ९ ॥ तुम भगवान् के परमभक्त हो, इसलिये तुम्हें मैं इसे सुनाऊँगा। जो इसके प्रति श्रद्धा रखते हैं, उनकी शुद्ध चित्तवृत्ति भगवान् श्रीकृष्ण के चरणों में अनन्य प्रेमके साथ बहुत शीघ्र लग जाती है ॥ १० ॥ जो लोग लोक या परलोक की किसी भी वस्तुकी इच्छा रखते हैं, या इसके विपरीत संसारमें दु:खका अनुभव करके जो उससे विरक्त हो गये हैं और निर्भय मोक्षपदको प्राप्त करना चाहते हैं, उन साधकों के लिये तथा योगसम्पन्न सिद्ध ज्ञानियोंके लिये भी समस्त शास्त्रोंका यही निर्णय है कि वे भगवान्के नामोंका प्रेमसे सङ्कीर्तन करें ॥ ११ ॥
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💐🌹💖🥀जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
हे निर्गुण निराकार हे सगुण साकार परब्रह्म परमेश्वर हे नाथ आपका हर क्षण सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश: चरण वंदन हर क्षण सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश:प्रणाम
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण 🙏🌹 हरि: शरणम् ही केवलम