मंगलवार, 6 अगस्त 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( श्रीवृन्दावनखण्ड ) बीसवाँ अध्याय (पोस्ट 01)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

( श्रीवृन्दावनखण्ड )

बीसवाँ अध्याय (पोस्ट 01)

 

श्रीराधा और श्रीकृष्ण के परस्पर शृङ्गार-धारण, रास, जलविहार एवं वनविहार का वर्णन

 

अथ कृष्णो हरिर्वारि लीलां कृत्त्वा मनोहरः ।
सर्वैर्गोपीगणैः सार्धं गिरिं गोवर्धनं ययौ ॥ १ ॥
गोवर्धने कन्दरायां रत्‍नभूम्यां हरिः स्वयम् ।
रासं च राधया सार्धं रासेश्वर्या चकार ह ॥ २ ॥
तत्र सिंहासने रम्ये तस्थतुः पुष्पसंकुले ।
तडिद्‌घनाविव गिरौ राधाकृष्णौ विरेजतुः ॥ ३ ॥
स्वामिन्यास्तत्र शृङ्गारं चक्रुः सख्यो मुदान्विताः ।
श्रीखण्डकुंकुमाद्यैश्च यावकागुरुकञ्जलैः ॥ ४ ॥
मकरन्दैः कीर्तिसुतां समभ्यर्च्य विधानतः ।
ददौ श्रीयमुना साक्षाद्‌राधायै नूपुराण्यलम् ॥ ५ ॥
मंजीरभूषणं दिव्यं श्रीगंगा जह्नुनन्दिनी ।
श्रीरमा किंकिणीजालं हारं श्रीमधुमाधवी ॥ ६ ॥
चंद्रहारं च विरजा कोटिचंद्रामलं शुभम् ।
ललिता कंचुकमणिं विशाखा कण्ठभूषणम् ॥ ७ ॥
अङ्गुलीयकरत्‍नानि ददौ चंद्रानना तदा ।
एकादशी राधिकायै रत्‍नाढ्यं कंकणद्वयम् ॥ ८ ॥
भुजकंकणरत्‍नानि शतचंद्रानना ददौ ।
तस्यै मधुमती साक्षात् स्फुरद्रत्‍नांगदद्वयम् ॥ ९ ॥
ताटंकयुगलं बन्दी कुंडले सुखदायिनी ।
आनंदी या सखी मुख्या राधायै भालतोरणम् ॥ १० ॥
पद्मा सद्भालतिलकं बिन्दुं चंद्रकला ददौ ।
नासामौक्तिकमालोलं ददौ पद्मावती सती ॥ ११ ॥
बालार्कद्युतिसंयुक्तं भालपुष्पं मनोहरम् ।
श्रीराधायै ददौ राजन् चंद्रकांता सखी शुभा ॥ १२ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं— राजन् ! तदनन्तर मनोहर श्यामसुन्दर श्रीहरि जलक्रीड़ा समाप्त करके समस्त गोपाङ्गनाओंके साथ गोवर्धन पर्वतको गये। उस पर्वतकी कन्दरामें रत्नमयी भूमिपर रासेश्वरी श्रीराधाके साथ साक्षात् श्रीहरिने रासनृत्य किया। वहाँ पुष्पोंसे सुसज्जित रम्य सिंहासनपर दोनों प्रिया-प्रियतम श्रीराधा-माधव विराजमान हुए, मानो किसी पर्वतपर विद्युत्-सुन्दरी और श्याम-घन एक साथ सुशोभित हो रहे हों। वहाँ सब सखियोंने बड़ी प्रसन्नताके साथ स्वामिनी श्रीराधाका शृङ्गार किया। चन्दन, केसर, कस्तूरी आदिसे तथा महावर, इत्र, अरगजा और काजल तथा सुगन्धित पुष्प-रसोंसे कीर्तिकुमारी श्रीराधाकी विधिपूर्वक अर्चना करके साक्षात् श्रीयमुना ने उन्हें नूपुर धारण कराया ॥१-५

जह्नुनन्दिनी गङ्गा ने मञ्जीर नामक दिव्य भूषण अर्पित किया। श्रीरमा ने कटिप्रदेश- में किङ्किणी जाल पहिनाया । श्रीमधुमाधवीने कण्ठमें हार अर्पित किया। विरजाने कोटि चन्द्रमाओंके समान उज्ज्वल एवं सुन्दर चन्द्रहार धारण कराया । ललिता ने मणिमण्डित कञ्चुकी पहनायी। विशाखाने कण्ठभूषण धारण कराया । चन्द्रानना ने रत्नमयी मुद्रिकाएँ अर्पित कीं। एकादशीकी अधिष्ठात्री देवीने श्रीराधाको रत्न- जटित दो कंगन भेंट किये। शतचन्द्रानना सखीने रत्नमय भुजकङ्कण ( बाजूबंद, बिजायठ, जोसन और झबिया आदि) दिये। साक्षात् मधुमतीने दो अङ्गद भेंट किये, जिनमें जड़े हुए रत्न उद्दीप्त हो रहे थे ॥६-९

बन्दीने दो ताटङ्क (तरकियाँ) और सुखदायिनीने दो कुण्डल दिये। सखियोंमें प्रधान आनन्दी ने श्रीराधा को भालतोरण भेंट किया। पद्मा ने चन्द्रकलाके समान चमकने वाली माथेकी बेंदी (टिकुली) दी। सती पद्मावतीने नासिकामें मोतीकी बुलाक पहना दी, जो थोड़ी-थोड़ी हिलती रहती थी। राजन् ! सुन्दरी चन्द्र कान्ता सखीने श्रीराधाको प्रातःकालिक सूर्यकी कान्ति- से युक्त मनोहर शीशफूल अर्पित किया ॥१०-१२

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖💐🌹जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    जय राधे राधे जय श्री राधे
    राधे राधे श्री कृष्ण
    जय श्री राधे गोविंद

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