शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गिरिराज खण्ड) दूसरा अध्याय (पोस्ट 02)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गिरिराज खण्ड)

दूसरा अध्याय (पोस्ट 02)

 

गोपों द्वारा गिरिराज-पूजन का महोत्सव

 

समुद्रजादिव्यगुणत्रयाणा-
मदिव्यवैमानिकजौषधीनाम् ।
जालंधरीणां च समुद्रकन्या-
बर्हिष्मतीजासुतलस्थितानाम् ॥१०॥
तथाप्सरःसर्वफणीन्द्रजाना-
मासां च यूथाव्रजवासिनीनाम् ।
समाययुः श्रीगिरिराजपार्श्वं
स्वलंकृताः पाणिबलिप्रदीपाः ॥११॥
गोपाश्च वृद्धाः शिशवो युवानः
पीताम्बरोष्णीषकबर्हमंडिताः ।
श्रीहारगुंजावनमालिकाभी
रेजुः समेता नवयष्टिवेणुभिः ॥१२॥
श्रुत्वोत्सवं शैलवरस्य मन्मुखा-
द्‌गङ्गाधरो बद्धकपर्दमंडलः।
कपालभृन्नस्थिजभस्मरूषितः
सर्पालिमालावलयैर्विभूषितः ॥१३॥
धत्तूरभंगाविषपानविह्वलो
हिमाद्रिपुत्रीसहितो गणावृतः ।
आरुह्य नन्दीश्वरमादिवाहनं
समाययौ श्रीगिरिराजमण्डलम् ॥१४॥
राजर्षिविप्रर्षिसुरर्षयश्च
सिद्धेशयोगेश्वरहंसमुख्याः ।
आजग्मुराराद्‌गिरिदर्शनार्थं
सहस्रशो विप्रगणा समेताः ॥१५॥
गोवर्धनो रत्‍नशिलामयोऽभू-
त्सुवर्णशृङ्गैः परितः स्फुरद्‌भिः ।
मत्तालिभिर्निर्झरसुन्दरीभि-
र्दरीभिरुच्चांगकरीव राजन् ॥१६॥
तदैव शैलाः किल मूर्तिमंतः
सोपायना मेरुहिमाचलाद्याः ।
नेमुर्गिरिं मंगलपाणयस्तं
गोवर्धनं रूपधरं गिरीन्द्राः ॥१७॥

जो समुद्र से उत्पन्न लक्ष्मी की सखियाँ थीं, दिव्य गुणत्रयमयी अङ्गनाएँ थीं, अदिव्य विमानचारियोंकी वनिताएँ थीं; जो ओषधिस्वरूपा थीं, जो जालन्धरके अन्तःपुरकी स्त्रियाँ थीं, जो समुद्र कन्याएँ थीं तथा जो बर्हिष्मतीनगरी तथा सुतल आदि लोकोंमें निवास करनेवाली थीं, उन समस्त दिव्याङ्गनाओंका समुदाय गिरिराज गोवर्धनके पास आकर विराजमान हुआ। इसी प्रकार अप्सराओं, समस्त नागकन्याओं तथा व्रजवासिनियोंके यूथ भी वस्त्राभूषणोंसे विभूषित हो, हाथोंमें पूजन सामग्री और प्रदीप लिये गिरिराजके पास आ पहुँचे ।। १०-११ ।।

बालक, युवक और वृद्ध गोप भी पीताम्बर, पगड़ी तथा मोरपंखसे मण्डित तथा सुन्दर हार, गुञ्जा और वनमालाओंसे विभूषित हो, नूतन यष्टि तथा वेणु लिये, वहाँ आकर शोभा पाने लगे ।। १२ ।।

मेरे मुखसे गिरिराज हिमालयके उस उत्सवका समाचार सुनकर गङ्गाधर शिव मस्तकपर जटाजूट बाँधे, हाथमें कपाल लिये, अङ्गोंमें चिताकी भस्म लगाये, सर्पोंकी माला तथा कंगनोंसे विभूषित हो, भाँग, धतूर और विष पीकर मत्त हुए गिरिराजनन्दिनी उमा के साथ आदि- वाहन नन्दीश्वरपर आरूढ़ हो, प्रमथगणों से घिरे हुए, गिरिराज मण्डलमें आये। मुख्य-मुख्य राजर्षि, ब्रह्मर्षि, देवर्षि, सिद्धेश्वर, हंस आदि योगेश्वर तथा सहस्रों ब्राह्मणवृन्द गिरिराज का दर्शन करने के लिए आस-पास एकत्र हो गये ॥ १५ ॥

गोवर्धन पर्वतकी एक-एक शिला रत्नमयी हो गयी। उसके सुवर्णमय शृङ्ग चारों ओर अपनी दीप्ति फैलाने लगे। राजन् ! वह पर्वत मतवाले भ्रमरों तथा निर्झर- शोभित कन्दराओंसे उन्नतकाय गजराजकी शोभा धारण करने लगा। उसी समय मेरु और हिमालय आदि गिरीन्द्र दिव्य रूप धारण करके, भेंट और माङ्गलिक वस्तुएँ हाथमें लिये मूर्तिमान् गोवर्धनको प्रणाम करने लगे ।। १६-७ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🌺💖🥀🌹जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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