रविवार, 4 अगस्त 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( श्रीवृन्दावनखण्ड ) उन्नीसवाँ अध्याय (पोस्ट 02)


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श्रीगर्ग-संहिता

( श्रीवृन्दावनखण्ड )

उन्नीसवाँ अध्याय (पोस्ट 02)

 

रासक्रीडा का वर्णन

 

काश्चिद्‌गोलोकवासिन्यः काश्चिच्छय्योपकारिकाः ।
शृङ्गारप्रकराः काश्चित्काश्चित्वै द्वारपालिकाः ॥ १४ ॥
पार्षदाख्याः सखिजनाः छत्रचामरपाणयः ।
पुष्पाभरणकारिण्यः श्रीवृन्दावनपालिकाः ॥ १५ ॥
गोवर्धननिवासिन्यः काश्चित्कुंजविधायिकाः ।
तन्निकुंजनिवासिन्यो नर्तक्यो वाद्यतत्पराः ॥ १६ ॥
सर्वा वै चन्द्रवदनाः किशोरवयसा नृप ।
आसां द्वादशयूथाश्चा जग्मुः श्रीकृष्णसन्निधिम् ॥ १७ ॥
तथैव यमुना साक्षाद्‌यूथीभूत्वा समाययौ ।
श्वेताम्बरा श्वेतवर्णा मुक्ताभरणभूषिता ॥ १८ ॥
तथाऽऽययौ कृष्णपत्‍नी नाम्ना या मधुमाधवी ।
पद्मवर्णा पुष्पभूषा यूथीभूत्वा शुभांबरा ॥ २१ ॥
तथैव विरजा साक्षाद्‌यूथीभूत्वा समाययौ ।
हरिद्‌वस्त्रा गौरवर्णा रत्‍नालंकारभूषिता ॥ २२ ॥
ललिताया विशाखाया मायायूथः समाययौ ।
एवं स्वष्टसखीनां च सखीनां किल षोडश ॥ २३ ॥
द्वात्रिंशच्च सखीनां च यूथा सर्वे समाययुः ।
रराज भगवान् राजन् स्त्रीगणै रासमण्डले ॥ २४ ॥
वृन्दावने यथाऽऽकाशे चंद्रस्तारागणैर्यथा ।
पीतवासःपरिकरो नटवेषो मनोहरः ॥ २५ ॥
वेत्रभूद्‌वादयन् वंशीं गोपीनां प्रीतिमावहन् ।
मयूरपक्षभृन्मौली स्रग्वी कुण्डलमण्डितः ॥ २६ ॥

इसी समय बहुत सी गोपाङ्गनाएँ श्रीकृष्णकी सेवामें उपस्थित हुई। कोई गोलोकनिवासिनी थीं, कोई शय्या सजाने में सहयोग करनेवाली थीं। कोई शृङ्गार धारण कराने की कला में कुशल थीं, तो कोई द्वारपालिका थीं। कुछ गोपियाँ 'पार्षद' नामधारिणी थीं, कुछ छत्र- चंवर धारण करनेवाली सखियाँ थीं और कुछ श्रीवृन्दावनकी रक्षामें नियुक्त थीं। कुछ गोवर्धनवासिनी, कुछ कुञ्जविधायिनी और कुछ निकुञ्जनिवासिनी थीं। कोई नृत्यमें निपुण और कोई वाद्य वादनमें प्रवीण थीं। नरेश्वर ! उन सबके मुख अपने सौन्दर्य- माधुर्यसे चन्द्रमाको भी लज्जित करते थे । वे सब की सब किशोरावस्थावाली तरुणियाँ थीं । इन सबके बारह यूथ श्रीकृष्णके समीप आये ।। १४-१७

इसी प्रकार साक्षात् यमुना भी अपना यूथ लिये आयीं। उनके अङ्गोंपर नीलवस्त्र शोभा पा रहे थे। वे रत्नमय आभूषणोंसे विभूषित तथा श्यामा (सोलह वर्षकी अवस्था अथवा श्याम कान्तिसे युक्त) थीं। उनके नेत्र प्रफुल्ल कमलदलको तिरस्कृत कर रहे थे। उन्हींकी तरह जह्नुनन्दिनी गङ्गा भी यूथ बाँधकर वहाँ आ पहुँची । उनकी अङ्ग- कान्ति श्वेतगौर थी। वे श्वेत वस्त्र तथा मोतीके आभूषणोंसे विभूषित थीं। वैसे ही साक्षात् रमा भी अपना यूथ लिये आयीं। उनके श्रीअङ्गोंपर अरुण वस्त्र सुशोभित थे। चन्द्रमाकी-सी अङ्ग - कान्ति, अधरोंपर मन्द मन्द हासकी छटा तथा विभिन्न अङ्गों में पद्मरागमणिके बने हुए अलंकार शोभा दे रहे थे ।। १८-२०

इसी तरह कृष्णपत्नी के नाम से अपना परिचय देने वाली मधुमाधवी (वसन्त-लक्ष्मी) भी वहाँ आयीं। उनके साथ भी सखियोंका समूह था । वे सब की सब प्रफुल्ल कमलकी-सी अङ्ग कान्तिवाली, पुष्पहारसे अलंकृत तथा सुन्दर वस्त्रोंसे सुशोभित थीं। इसी रीतिसे साक्षात् विरजा भी सखियोंका यूथ लिये वहाँ आयीं। उनके अङ्गोंपर हरे रंगके वस्त्र शोभा दे रहे थे। वे गौरवर्णा तथा रत्नमय अलंकारोंसे अलंकृत थीं ।। २१-२२

 ललिता, विशाखा और लक्ष्मीके भी यूथ वहाँ आये। इसी प्रकार अष्टसखियों के, षोडश सखियों के तथा बत्तीस सखियोंके सम्पूर्ण यूथ भी वहाँ आ पहुँचे । राजन् ! भगवान् श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण उन युवतीजनों- के साथ रासमण्डल की रङ्गभूमि में बड़ी शोभा पाने लगे ॥ २ - २४ ॥

जैसे आकाशमें चन्द्रमा ताराओं के साथ सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार श्रीवृन्दावनमें उन सुन्दरियोंके साथ श्रीकृष्णचन्द्रकी शोभा हो रही थी। उनकी कमरमें पीताम्बर कसा हुआ था। वे नटवेषमें सबका मन मोहे लेते थे। उनके हाथमें बेंतकी छड़ी थी। वे वंशी बजाकर उन गोप- सुन्दरियोंकी प्रीति बढ़ा रहे थे । माथेपर मोरपंखका मुकुट, वक्षःस्थलपर पुष्पहार एवं वनमाला तथा कानोंमें कुण्डल - ये ही उनके अलंकार थे ।। २५-२६

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से 



1 टिप्पणी:

  1. 🌹🥀श्रीकृष्णाय वयं नुमः🙏🙏
    गोविंदाय नमो नमः
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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