सोमवार, 19 अगस्त 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-छठा अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
द्वितीय स्कन्ध- छठा अध्याय..(पोस्ट०९)

विराट् स्वरूप की विभूतियों का वर्णन

यस्यावतारकर्माणि गायंति ह्यस्मदादयः ।
न यं विदंति तत्त्वेन तस्मै भगवते नमः ॥ ३७ ॥
स एष आद्यः पुरुषः कल्पे कल्पे सृजत्यजः ।
आत्मा आत्मनि आत्मनाऽऽत्मानं, स संयच्छति पाति च ॥ ३८ ॥
विशुद्धं केवलं ज्ञानं प्रत्यक् सम्यग् अवस्थितम् ।
सत्यं पूर्णं अनाद्यन्तं निर्गुणं नित्यमद्वयम् ॥ ३९ ॥
ऋषे विदंति मुनयः प्रशान्तात्मेन्द्रियाशयाः ।
यदा तद् एव असत् तर्कैः तिरोधीयेत विप्लुतम् ॥ ४० ॥

हम लोग केवल जिनके अवतार की लीलाओं का गान ही करते रहते हैं, उनके तत्त्व को नहीं जानते—उन भगवान्‌ के श्रीचरणों में मैं नमस्कार करता हूँ ॥ ३७ ॥ वे अजन्मा एवं पुरुषोत्तम हैं। प्रत्येक कल्पमें वे स्वयं अपने आपमें अपने आपकी ही सृष्टि करते हैं, रक्षा करते हैं और संहार कर लेते हैं ॥ ३८ ॥ वे मायाके लेशसे रहित, केवल ज्ञानस्वरूप हैं और अन्तरात्माके रूपमें एकरस स्थित हैं। वे तीनों कालमें सत्य एवं परिपूर्ण हैं; न उनका आदि है न अन्त। वे तीनों गुणोंसे रहित, सनातन एवं अद्वितीय हैं ॥ ३९ ॥ नारद ! महात्मालोग जिस समय अपने अन्त:करण, इन्द्रिय और शरीरको शान्त कर लेते हैं, उस समय उनका साक्षात्कार करते हैं। परन्तु जब असत्पुरुषोंके द्वारा कुतर्कोंका जाल बिछाकर उनको ढक दिया जाता है, तब उनके दर्शन नहीं हो पाते ॥ ४० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌼🌿🌺ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🙏🙏
    नारायण नारायण नारायण नारायण🙏🙏 हे गोविंद हे गोपाल हे करुणामय दीन दयाल

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