शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गिरिराज खण्ड) दसवाँ अध्याय (पोस्ट 02)

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गिरिराज खण्ड)

दसवाँ अध्याय (पोस्ट 02)

 

गोवर्धन शिला के स्पर्श से एक राक्षस का उद्धार तथा दिव्यरूपधारी उस सिद्ध के मुख से गोवर्द्धन की महिमा का वर्णन

 

सिद्ध उवाच -
गिरिराजो हरे रूपं श्रीमान् गोवर्धनो गिरिः ।
तस्य दर्शनमात्रेण नरो याति कृतार्थताम् ॥१४॥
गन्धमादनयात्रायां यत्फलं लभते नरः ।
तस्मात्कोटिगुणं पुण्यं गिरिराजस्य दर्शने ॥१५॥
पंचवर्षसहस्राणि केदारे यत्तपःफलम् ।
तच्च गोवर्धने विप्र क्षणेन लभते नरः ॥१६॥
मलयाद्रौ स्वर्णभारदानस्यापि च यत्फलम् ।
तस्मात्कोटिगुणं पुण्यं गिरिराजे हि मासिकम् ॥१७॥
पर्वते मंगलप्रस्थे यो दद्याद्धेमदक्षिणाम् ।
स याति विष्णुसारूप्यं युक्तः पापशतैरपि ॥१८॥
तत्पदं हि नरो याति गिरिराजस्य दर्शनात् ।
गिरिराजसमं पुण्यमन्यत्तीर्थं न विद्यते ॥१९॥
ऋषभाद्रौ कूटकाद्रौ कोलकाद्रौ तथा नरः ।
सुवर्णशृङ्गयुक्तानां गवां कोटीर्ददाति यः ॥२०॥
महापुण्यं लभेत्सोऽपि विप्रान्संपूज्य यत्‍नतः ।
तस्माल्लक्षगुणं पुण्यं गिरौ गोवर्धने द्विज ॥२१॥
ऋष्यमूकस्य सह्यस्य तथा देवगिरेः पुनः ।
यात्रायां लभते पुण्यं समस्ताया भुवः फलम् ॥२२॥
गिरिराजस्य यात्रायां तस्मात्कोटिगुणं फलम् ।
गिरिराजसमं तीर्थं न भूतं न भविष्यति ॥२३॥
श्रीशैले दश वर्षाणि कुण्डे विद्याधरे नरः ।
स्नानं करोति सुकृती शतयज्ञफलं लभेत् ॥२४॥
गोवर्धने पुच्छकुण्डे दिनैकं स्नानकृन्नरः ।
कोटियज्ञफलं साक्षात्पुण्यमेति न संशयः ॥२५॥
वेंकटाद्रौ वारिधारे महेन्द्रे विन्ध्यपर्वते ।
यज्ञं कृत्वा ह्यश्वमेधं नरो नाकपतिर्भवेत् ॥२६॥
गोवर्धनेऽस्मिन्यो यज्ञं कृत्वा दत्वा सुदक्षिणाम् ।
नाके पदं संविधाय स विष्णोः पदमाव्रजेत् ॥२७॥

सिद्ध ने कहा- ब्रह्मन् ! श्रीमान् गिरिराज गोवर्द्धन पर्वत साक्षात् श्रीहरिका रूप है। उसके दर्शनमात्र से मनुष्य कृतार्थ हो जाता है । गन्धमादन की यात्रा करनेसे मनुष्य को जिस फलकी प्राप्ति होती है, उससे कोटिगुना पुण्य गिरिराज के दर्शनसे होता है। विप्रवर ! केदारतीर्थ में पाँच हजार वर्षों तक तपस्या करनेसे जिस फलकी प्राप्ति होती है, वही फल गोवर्द्धन पर्वत पर तप करनेसे मनुष्यको क्षणभरमें प्राप्त हो जाता है ।। १४–१६ ॥

मलयाचलपर एक भार स्वर्णका दान करनेसे जिस पुण्यफलकी प्राप्ति होती है, उससे कोटिगुना पुण्य गिरिराजपर एक माशा सुवर्णका दान करनेसे ही मिल जाता है। जो मङ्गलप्रस्थ पर्वतपर सोनेकी दक्षिणा देता है, वह सैकड़ों पापोंसे युक्त होनेपर भी भगवान् विष्णुका सारूप्य प्राप्त कर लेता है। भगवान्‌के उसी पदको मनुष्य गिरिराजका दर्शन करनेमात्रसे पा लेता है। गिरिराजके समान पुण्यतीर्थ दूसरा कोई नहीं है ।। १–१

ऋषभ पर्वत, कूटक पर्वत तथा कोलक पर्वतपर सोनेसे मढ़े सींगवाली एक करोड़ गौओंका जो दान करता है, वह भी ब्राह्मणोंका यत्नपूर्वक पूजन करके महान् पुण्यका भागी होता है । ब्रह्मन् ! उसकी अपेक्षा भी लाखगुना पुण्य गोवर्द्धन पर्वतकी यात्रा करनेमात्रसे सुलभ होता है ।। २०२१

ऋष्यमूक, सह्यगिरि तथा देवगिरिकी एवं सम्पूर्ण पृथ्वी की यात्रा करनेपर मनुष्य जिस पुण्यफलको पाता है,गिरिराज गोवर्धनकी यात्रा करनेपर उससे भी कोटिगुना अधिक फल उसे प्राप्त हो जाता है। अतः गिरिराजके समान तीर्थ न तो पहले कभी हुआ है और न भविष्यत्काल में होगा ही ।। २२२३

श्रीशैल पर दस वर्षों तक रहकर वहाँ के विद्याधर- कुण्ड में जो प्रतिदिन स्नान करता है, वह पुण्यात्मा मनुष्य सौ यज्ञोंके अनुष्ठान का फल पा लेता है; परंतु गोवर्द्धन पर्वत के पुच्छकुण्ड में एक दिन स्नान करने- वाला मनुष्य कोटियज्ञोंके साक्षात् अनुष्ठानका पुण्य- फल पा लेता है, इसमें संशय नहीं है ।। २४-२५

वेङ्कटाचल, वारिधार, महेन्द्र और विन्ध्याचलपर एक अश्वमेध - यज्ञका अनुष्ठान करके मनुष्य स्वर्गलोकका अधिपति हो जाता है; परंतु इस गोवर्द्धन पर्वतपर जो यज्ञ करके उत्तम दक्षिणा देता है, वह स्वर्गलोकके मस्तकपर पैर रखकर भगवान् विष्णुके धाममें चला जाता है ।। २६-२७

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से 

 



1 टिप्पणी:

  1. 💖♻️🌹🌷जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय हो गोवर्धन वासी सांवरे
    जय गिरिराज धरण
    गोवर्धन गिरधारी महाराज
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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