शनिवार, 21 सितंबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गिरिराज खण्ड) दसवाँ अध्याय (पोस्ट 03)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गिरिराज खण्ड)

दसवाँ अध्याय (पोस्ट 03)

 

गोवर्धन शिला के स्पर्श से एक राक्षस का उद्धार तथा दिव्यरूपधारी उस सिद्ध के मुख से गोवर्द्धन की महिमा का वर्णन

 

चित्रकूटे पयस्विन्यां श्रीरामनवमीदिने ।
पारियात्रे तृतीयायां वैशाखस्य द्विजोत्तम ॥२८॥
कुकुराद्रौ च पूर्णायां नीलाद्रौ द्वादशीदिने ।
इन्द्रकीले च सप्तम्यां स्नानं दानं तपःक्रियाः ॥२९॥
तत्सर्वं कोटिगुणितं भवतीत्थं हि भारते ।
गोवर्धने तु तत्सर्वमनन्तं जायते द्विज ॥३०॥
गोदावर्यां गुरौ सिंहे मायापुर्यां तु कुंभगे ।
पुष्करे पुष्यनक्षत्रे कुरुक्षेत्रे रविग्रहे ॥३१॥
चन्द्रग्रहे तु काश्यां वै फाल्गुने नैमिषे तथा ।
एकादश्यां शूकरे च कार्तिक्यां गणमुक्तिदे ॥३२॥
जन्माष्टम्यां मधोः पुर्यां खाण्डवे द्वादशीदिने ।
कार्तिक्यां पूर्णिमायां तु वटेश्वरमहावटे ॥३३॥
मकरार्के प्रयागे तु बर्हिष्मत्यां हि वैधृतौ ।
अयोध्यासरयूतीरे श्रीरामनवमीदिने ॥३४॥
एवं शिवचतुर्दश्यां वैजनाथशुभे वने ।
तथा दर्शे सोमवारे गंगासागरसंगमे ॥३५॥
दशम्यां सेतुबन्धे च श्रीरङ्गे सप्तमीदिने ।
एषु दानं तपः स्नानं जपो देवद्विजार्चनम् ॥३६॥
तत्सर्वं कोटिगुणितं भवतीह द्विजोत्तम ।
तत्तुल्यं पुण्यमाप्नोति गिरौ गोवर्धने वरे ॥३७॥
गोविन्दकुण्डे विशदे यः स्नाति कृष्णमानसः ।
प्राप्नोति कृष्णसारूप्यं मैथिलेन्द्र न संशयः ॥३८॥
अश्वमेधसहस्राणि राजसूयशतानि च ।
मानसीगङ्गया तुल्यं न भवंत्यत्र नो गिरौ ॥३९॥
त्वया विप्र कृतं साक्षाद्‌गिरिराजस्य दर्शनम् ।
स्पर्शनं च ततः स्नानं न त्वत्तोऽप्यधिको भुवि ॥४०॥
न मन्यसे चेन्मां पश्य महापातकिनं परम् ।
गोवर्धनशिलास्पर्शात्कृष्णसारूप्यतां गतम् ॥४१॥

द्विजोत्तम ! चित्रकूट पर्वतपर श्रीरामनवमी के दिन पयस्विनी (मन्दाकिनी) में वैशाख की तृतीया को पारियात्र पर्वतपर, पूर्णिमा को कुकुराचलपर, द्वादशी के दिन नीलाचलपर और सप्तमी को इन्द्रकील पर्वतपर जो स्नान, दान और तप आदि पुण्यकर्म किये जाते हैं, वे सब कोटिगुने हो जाते हैं। ब्रह्मन् ! इसी प्रकार भारतवर्षके गोवर्द्धन तीर्थमें जो स्नानादि शुभकर्म किया जाता है, वह सब अनन्तगुना हो जाता है ।। २८-३०

बृहस्पति के सिंहराशि में स्थित होने पर गोदावरी में और कुम्भराशि में स्थित होनेपर हरद्वार में, पुष्यनक्षत्र आनेपर पुष्करमें, सूर्यग्रहण होनेपर कुरुक्षेत्र में, चन्द्रग्रहण होनेपर काशीमें, फाल्गुन आनेपर नैमिषारण्य में, एकादशी के दिन शूकरतीर्थ में, कार्तिक की पूर्णिमा को गढ़मुक्तेश्वर में, जन्माष्टमीके दिन मथुरामें, द्वादशीके दिन खाण्डव-वनमें, कार्तिककी पूर्णिमाको वटेश्वर नामक महावटके पास, मकर संक्राति लगनेपर प्रयाग- तीर्थमें, वैधृतियोग आनेपर बर्हिष्मतिमें, श्रीरामनवमीके दिन अयोध्यागत सरयूके तटपर, शिव चतुर्दशीको शुभ वैद्यनाथ- वनमें, सोमवारगत अमावास्याको गङ्गासागर-संगममें, दशमीको सेतुबन्धपर तथा सप्तमीको श्रीरङ्गतीर्थमें किया हुआ दान, तप, स्नान, जप, देवपूजन, ब्राह्मणपूजन आदि जो शुभकर्म किया जाता है, द्विजोत्तम ! वह कोटिगुना हो जाता है ।। ३१६ ॥

इन सबके समान पुण्य फल केवल गोवर्धन पर्वतकी यात्रा करनेसे प्राप्त हो जाता है। मैथिलेन्द्र ! जो भगवान् श्रीकृष्णमें मन लगाकर निर्मल गोविन्दकुण्डमें स्नान करता है, वह भगवान् श्रीकृष्णका सारूप्य प्राप्त कर लेता है—इसमें संशय नहीं है ।। ३७-३८

हमारे गोवर्द्धन पर्वतपर जो मानसी गङ्गा है, उनमें डुबकी लगानेकी समानता करनेवाले सहस्रों अश्वमेध यज्ञ तथा सैकड़ों राजसूय यज्ञ भी नहीं हैं। विप्रवर! आपने साक्षात् गिरिराजका दर्शन, स्पर्श तथा वहाँ स्नान किया है, अतः इस भूतलपर आपसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है। यदि आपको विश्वास न हो तो मेरी ओर देखिये। मैं बहुत बड़ा महापातकी था, किंतु गोवर्द्धनकी शिलाका स्पर्श होनेमात्र से मैंने भगवान् श्रीकृष्णका सारूप्य प्राप्त कर लिया ।। ३९-४१ ॥

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें श्रीगिरिराजखण्डके अन्तर्गत नारद- बहुलाश्व-संवादमें 'श्रीगिरिराजका माहात्म्य' नामक दसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १० ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌸🍂💐🚩जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय हो गोवर्धन गिरधारी महाराज
    जय श्री गिरिराज धरण गोविंद

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